Mohammad Atif  
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Joined 24 July 2018


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13 APR AT 19:35

एक बग़ल में चाँद होगा
एक बग़ल में रोटियाँ
एक बग़ल में नींद होगी
एक बग़ल में लोरियाँ
हम चाँद पे रोटी की चादर
डाल कर सो जाएंगे
और नींद से कह देंगे
लोरी कल सुनाने आएंगे

पीयूश मिश्रा

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8 APR AT 9:48

پرانے لوگ کچھ اس طرح رخصت ہوئے جاتے ہیں
جیسے شاخوں سے پیلے پتے پتجھڑ میں ٹوٹ جاتے ہیں
چشم زدن میں زندگی بھر کے لیے خاموش ہو کر
جد و جہد بھرا ایک مکمل دور پیچھے چھوڑ جاتے ہیں

पुराने लोग कुछ इस तरह रुख़्सत हुए जाते हैं
जैसे शाखों से पीले पत्ते पतझड़ में टूट जाते हैं
चश्म-ए-ज़दन में ज़िंदगी भर के लिए ख़ामोश हो कर
जद्दो जहद भरा एक मुक़म्मल दौर पीछे छोड़ जाते हैं

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22 JAN AT 22:47

क्यों अफ़सुर्दा हो आतिफ़
किसी को तुम्हारी क्या पड़ी है
यह तुम्हारा दर्द है तुम ही संभालो
दुनिया को तुम्हारे दर्द की क्या पड़ी है

बाप का साया सर से उठ चला है
माना कि यह आज़माइश बड़ी है
मगर यहीं कुदरत का निज़ाम है
अब तुम भी उठो, देखो!
जिंदगी दरवाज़े पे खड़ी है

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2 NOV 2024 AT 13:13

हर महीना एक नया इम्तिहान ले के आता है
हर बार बड़ी मेहनत से जिम्मेदारियाँ अदा करता हूं
रोज़ कुआँ खोदता हूँ रोज़ पानी भरता हूँ
कुछ इस तरह मैं किश्तों को रफ़ा दफ़ा करता हूँ

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23 OCT 2024 AT 9:04

आँखों पर अश्कों के
कुछ क़तरे ठहरे थे,
उनसे रुमाल को भिगो कर
हमने चश्मा साफ़ कर लिया।
अब कुछ धुंधला नहीं,
सब साफ़ दिखता है,
जो मुजरिम थे अश्कों के,
उनको भी माफ़ कर दिया।

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17 OCT 2024 AT 17:10

An ocean of knowledge
To enlighten Millions
A pious light
To inflict innovations
A deep inspiration
To propel culture and communication
The aura of Sir Syed Ahmad Khan
Will continue to flourish
Till eternity across generations

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12 OCT 2024 AT 19:24

सर्दी की धूप में गर्मी वाली तपिश है
और सुबह शाम हल्की-हल्की ठंड की दबिश है
कोई ताज्जुब नहीं कि यह माह ए अक्तूबर है
तभी तो जिस्म में नज़ले ज़ुकाम की ख़लिश है

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8 OCT 2024 AT 19:28

تیری فراق میں
بھرے پیمانے چھوڑ آؤنگا

نہ ملا جو تو
تو سمندر بھی چھوڑ آؤنگا

الگ ہی لطف ہے
تیرے ہونٹوں سے تشنگی بجھانےکا

میں تری خاطر پھول تو کیا
نازک کلیاں بھی چھوڑ آؤنگا

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6 OCT 2024 AT 12:18

سچ ہے کہ درد کی زباں نہیں ہوتی ہے
پر اس کی ٹیس مضروب کی تڑپ سے بیاں ہوتی ہے۔
زخم تو لگ جاتا ہے چشمِ زدن میں
آہ و فغاں تاعمر عیاں ہوتی ہے


सच है कि दर्द की ज़ुबां नहीं होती है
पर उसकी टीस मज़रूब की तड़प से बयां होती है
ज़ख्म तो लग जाता है चश्म-ए-ज़दन में
आह-ओ-फुगां ता उम्र अयां होती है

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9 SEP 2024 AT 8:32

I realised I am a nobody.


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