इस गमले को रखूं किधर?
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स्याह रात का आना, रात का जाना
दर्शाता है सूरज की उपस्थिति को,
हृदय में बसे काले अंधियारे को मिटाने
मन मशाल जला उजाला लाना होगा।
सोच मत बैठ किसी किनारे पर
कितना है गहरा दुःख का दरिया,
बयार हो विपरीत बहती धारा के
वो छोर पाने दरिया में उतरना होगा।
समय का यह चलता जो कालचक्र
समझ,कभी एक समान नहीं रहता,
हिम्मत लिए जिसने बढ़ाए कदम
उसी का सदा यह संगी साथी रहा।
जागती, उनींदी, बुझती आंखों में
स्वप्न जो अक्सर तुमने देखे होंगे,
अगर तुम्हें उन्हें करना हैं हासिल
तो मनुज जगना होगा, उठना होगा।-
तुम्हे क्या कहना था क्या न मुझे कुछ समझ नही आया,
लम्बा था सफ़र छांव लेने कोई दरखत नजर नही आया।
तेरी यादों का सहारा लिए भटक रहा हूं जाने कब से,
जाने क्यों राह में मेरी वो तेरा दर तेरा शहर नहीं आया।-
विंध्य, हिमालय का विस्तार लिए
बोली वेशभूषा भाषा हज़ार लिए।
जला रहा ज्ञान दीप युगों युगों से
वसुधैवकुटुम्बकम् का प्रचार लिए ।।
कण कण जिसके बसे अपनापन
शाम सवेरे शुर-गाथा सुने बचपन।
भुजाओं में जिसकी जग सिमटा
उस मां भारती को बारंबार नमन।।
आज़ादी पाने तिरंगा हाथ लिए
जन जन की टोली साथ लिए।
लड़ गए भिड़ गए हर तूफानों से
हृदय में बस जुनूनी जज़्बात लिए।।-
दिल में दर्ज़ एक नाम शाम और सहर बन आया,
था जो कभी अजनबी आज हमसफर बन आया।
गुजारा हर पल उल्फत में कुछ यूं उसके संग,
जब देखा आईना उसमें वो मेरी नजर बन आया।
ख्वाब ठहरे थे अधूरे जो मुकम्मल होने को कभी,
मिला आसमां उन्हें वो चांद सा असर बन आया।
चांद सा वो रोशन रहा काली घनी मेरी रातों में,
जो रात बीती वो साथ मेरे मेरा सहर बन आया।
खता नहीं है हमदम तुम्हें बेशुमार चाहते रहना,
जिंदगी है तुमसे रोशन इश्क इस कदर बन आया।-
ख्यालों में पिरोता तुम्हें मैं
चपल चंचल मासूम छवि,
मधुर गुंजन सप्तरंग जैसे
लिखता पढ़ता बन के कवि।
(अनुशीर्षक)-
चलते चलते यूँ ही आज एक नज़र उसे देखा,
कदम ले गए फिर जहाँ जिस डगर उसे देखा।
मत पूछो शाम और सहर, कब किस किस पल,
मैंने बस हर पल, हर घड़ी, हर पहर उसे देखा।
उस पर क़यामत यह कि है वो ख़ूबसूरत इतनी,
कि एक रोज़ चाँद ने चुपके से निखर उसे देखा।
ज़बाँ ने जब कुछ कहा, हमने कहाँ कुछ सुना,
दिल से बाज़ी हारकर, हमने बेखबर उसे देखा।
पूछा नज़रों ने आईने में देख 'मन' यह तुम नहीं,
किया ख़ुद में शामिल उसे, इस कदर उसे देखा।-
यह नहीं सिर्फ़ कुछ लम्हों की बात है,
रंगों की आज हुई रंगो से मुलाक़ात है।
चूनर ओढ़ ली रंग बिरंगी प्रकृती ने,
भ्रमर गुँजन, तितलियों की बारात है।
दामन था कल तलक जो सूना सूना,
हँसती महकती हर सू आज हयात है।
पूर्ण चंद्र, लगा सितारों का जमावड़ा,
आसमां है रोशन, चाँदनी भरी रात है।
गुल चम्पा कनेर खिले गुलशन गुलशन,
इतराते गुलाब छाई शबनमी बरसात है।
गुलाल अबीर हवाएं उछालते झलकाते,
खिला खिला जर्रा जर्रा हसीं लम्हात हैं।
सौगात लेकर आई होली रंगो से भरी,
खुशनुमा हर पल खुशनुमा दिन रात है।-
समाया मैं ही घट घट कण कण
बैठा मैं भूधर, मैं अविनाशी हूँ।
हूँ मैं अघोर, रूद्र रूप घनघोर
हूँ मैं ही देवदेव, मैं सन्यासी हूँ।।
मेरे नाम से गुँजायमान संसार
हूँ आदि अनंत, मै नभ विस्तार।
यह चँद्र यह सूरज उगाया मेरा
बैठा मैं केदार, बैठा मैं काशी हूँ।।
कंचन थाल लाकर धरा धरा पर
तरु तरु सुहासित पुष्प खिलाकर।
करूँ ताँडव तन भश्म लगाया मेरा
हूँ मैं अनन्त, मैं ही अविनाशी हूँ।।
स्वयं में खोज नादान मुझको
हिय मन बैठा बस मै मिलूंगा।
सारा जग बनाया सजाया मेरा
बैठा मैं केदार, बैठा मैं काशी हूँ।।
जब झलका गरल का प्याला
तब पीकर मैंने किया उजाला।
धूप छाँव का खेल बनाया मेरा
हूँ मैं ही देवदेव, मैं सन्यासी हूँ।।-