क्यों न हर साल मुहब्बत में गुज़ारा जाए और हर रोज़ नया साल पुकारा जाए
कोई गुल ऐसा कभी हम ही खिलायें इक दिन, रंग जिसका न ख़िज़ाओं से उतारा जाए..
~ खास शख्सियत-
महल का नक्शा बना रहा हूं,
कितना सुंदर होगी वहां दीवारे
ये सोचकर... read more
कमजोर कोई नहीं होता जनाब..
सब बस समय का खेल है।
~ मनीष (मन की इच्छा)-
खुद को पढ़िए सारे सवालों का जबाब आपके अंदर निहित है, चाहे कितनी ही बड़ी समस्या क्यों ना हो उन सारे का हल आपके अंदर छुपा है।
~ मनीष (मन की इच्छा)-
ठोकरों को भी नहीं होती हर एक सिर की तलाश, भांप लेती हैं किसे आता है सजदा करना, झुक के मिलने से जो कहीं आ जाए गुरूर, फिर भी तनहाई में जाकर ही सिर ऊंचा करना।
~ वसीम बरेलवी-
कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ'त नहीं मिलती..
~ निदा फ़ाज़ली-
जब सफ़लता की ख़्वाहिश आपको सोने ना दे, जब मेहनत के अलावा और कुछ अच्छा ना लगे, जब लगातार काम करने के बाद भी थकावट ना हो, तो समझ लेना सफ़लता का नया इतिहास रचने वाला है।
~ नीरज चोपड़ा-
मैंने दरिया से सीखी है पानी की ये पर्दा-दारी
ऊपर ऊपर हँसते रहना गहराई में रो लेना
~ खास शख्सियत-
अगर आपको जीवन में लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो राहों में आने वाले छोटे - छोटे कांटों से मत घबराईए साहब।
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दिल और दिमाग के बीच जंग जारी है.. इस बार दिमाग को जितना ही होगा और इस जंग में जीत खुद पे जीत और खुद पे जीत मतलब पूरे ब्रह्मांड पर जीत होगी।
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आप भले ही किसी दूसरे क्षेत्र में एक बार - दो बार या दस बार कोशिश करें आपको मंजिल मिल जाएगी लेकिन पत्रकारिता में आपको हर रोज एक नया इम्तिहान देना पड़ता है।
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