20 SEP 2018 AT 11:29

"सुनहु भरत भावी प्रबल,
बिलखि कहेहुँ मुनिनाथ।
हानि,लाभ,जीवन,मरण,
यश,अपयश विधि हाँथ।"
"भले ही लाभ, हानि,जीवन, मरण, ईश्वर के हाथ हो, परन्तु हानि के बाद हम न हारें यह हमारे ही हाथ है, लाभ को हम शुभ लाभ में परिवर्तित कर लें यह भी जीव के ही अधिकार क्षेत्र में आता है, जीवन जितना भी मिले उसे हम कैसे जियें यह सिर्फ जीव अर्थात हम ही तय करते हैं, मरण अगर प्रभु के हाँथ है, तो उस परमात्मा का स्मरण हमारे अपनें हाँथ है  "।
_ ईश्वर का ध्यान कभी न बिसारें ।

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