इक ड़ोरी से बंधा रिश्ता अटूट
ना तू मनाएँ ना मैं जाऊँ रूठ!
टॉम अण्ड जेरी सी चली ये ज़िंदगी अपनी
के मैं जो कहूँ सच, तू जो कहें झूँठ!
लड़ते- झगड़ते, छेड़ते-चिढ़ाते
कट गयी आधी ज़िंदगी अपनी
फिर भी मुकम्मल है रिश्ता यह
मैं बांधूँगी ये धागा, और जेब तेरी लूँगी लूट!
के आख़िर एक डोर से बंधा है ये रिश्ता अटूट!
-