अगर चुप रहूं तो क्या तुम ख़ामोशियों की आवाज समझने लगोगे दिल में दबी हुई चीख़ों के अल्फाज क्या तुम फिर से परखने लगोगे जज्बातों के झंझावात न होंगे पर भावनाओं के ज्वार से बहकने लगोगे फूल प्रेम का खिला कर के मन में क्या तुम फ़िर से महकने लगोगे
तटस्थ रहकर करना वर्णन व्यथित हृदत का मानो बिना प्राणवायु का जल संबल बना हो मीन के जीवन में// उदात्त मनोभाव से नहीं संभव निस्तारण... कुछ व्यथाओं का कभी उत्तेजना भी होती है जरूरी उद्घाटित करने कुछ वर्जनाओं को
विरह तृप्ति की आस में जीवन की प्रत्याशा कभी दीर्घ तो कभी क्षणभंगुर सी प्रतीत होती प्रत्येक अवस्था में रहता है कुछ विक्षोभ कभी कुछ विरोधाभास खलल डालते है जीवन में तो कभी संघर्षों के मध्य मिलती है सीख जिजीविषा की
स्मृतियाँ संजो के रखूं या दफन कर दूं कोई ख़्वाब देखूं या ख्वाहिशों का दमन कर दूं जब पल भर खुशी के बाद बस गमों का बसेरा हो तो फिर रात को ही क्यों न सहर समझ लूं