Manish Jha   (Nish)
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Joined 17 November 2017


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Joined 17 November 2017
1 JUL AT 22:44

वक़्त मेरा नहीं, इसलिए व्यक्त नहीं हो सकता...

हूँ कर्ज से पिघला मैं सख्त नहीं हो सकता ...

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1 JUL AT 22:37

"कि कहती हो के तुम पर मैं कभी कुछ भी नहीं लिखता,

कि तुम पे कभी कुछ लिख दिया तो अमर हो जाऊंगा लैला।"

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12 MAR AT 8:37

Teri baat gar sach na ho to dua ho jaye,

Tujhe jo sabse zaruri hua, wo ho jaye.

Main khwab ki dahleez par karu tere aane ka intezar,

Mera naseeb ban nikle jo tera chhua ho jaye..❤️🌹

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9 MAR AT 14:04

I am one kind of epidemic

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21 FEB AT 14:44

"आँखें सुंदर हैं, इन पे मस्कारा होना चाहिए,
आपकी तारीफ में शेर करारा होना चाहिए ।"

"माथे पर बिंदी, माँग मेरे नाम की भरी है आपने,
ग़र बात ये हुई है तो अब वक़्त हमारा होना चाहिए।"

"ताश के पत्तों का महल हवा छू भी न पाएगी,
भरोसा करने को इस हद तक सहारा होना चाहिए।"

"ठीक है पहली दफ़ा हमसे हुईं गलतियाँ,
ज़िंदगी बस एक है, मौका दोबारा होना चाहिए।"

"कहने को धूप हो, हो रही तकलीफ भी,
यार कह दे सर्द है, तो सर्द गंवारा होना चाहिए।"

"रहूं हे प्रभु ! सदा तेरा शुक्रगुजार मैं हर जन्म,
मेरे अपने मुझपे नाज़ करें, ये नजारा होना चाहिए। "

🌸

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26 JAN AT 22:10

एक साधना है मेरा प्रेम जिसकी तू साधिका है,
मैं कृष्ण हूँ या नहीं तू अवश्य ही राधिका है।

पश्मीना की शॉल सा सर्द रातों में तेरा साथ है, 
ये स्वप्न है या सच है, मेरे हाथों में तेरा हाथ है।


इस जीवन की जलधारी में रिस आए हैं प्रेम के पल,
'गलंतिका' सी याद मंदिर में बसी पहली मुलाकात है।

गलंतिका - श्री शिवलिंग के ऊपर की मटकी जिस से जल रिसता है।
Poetry in making...❣️





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29 NOV 2024 AT 8:24

Teri chaukhat pe chhod ye dil aaya hun,

Main jabse pahli dafa tujhse mil aaya hun❣️

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1 NOV 2024 AT 15:40

कुछ ये हश्र हुआ ज़िन्दगी का कि कोई चारा ना रहा,
गलतियों से डर के भी उनको दोहराता चला गया...

ज़ब इस दहलीज़ पर पहुँचा कि कोई सहारा ना रहा,
मैं बीच धार को ही समझता किनारा चला गया...

तमाम कर के कोशिश थक हार के बैठा जो सोचने,
एक कौड़ी भी न खर्च शौक पर, सब नफ़े की आस में उड़ाता चला गया...

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15 AUG 2024 AT 10:48

मुश्किल तो है,
नदियों का पर्वतों से कल कल बहते हुए,
यौवन शहरों के किनारों पर बिखेर,
समंदर से मिल जाना...

मुश्किल तो है,
पीहर को छोड़ कन्या का रोते हुए,
स्नेह प्रेम को आँचल में समेट,
साजन के घर जाना...

मुश्किल तो है,
अंतर्मन में सम्हाले अतीत के गंध को,
पुड़िया में लपेट किसी मुहाने पर छोड़,
स्वयं से जीत जाना...

साथ पाकर पर सच्चे साथी का,
आसमाँ छूना भी आसाँ हो जाता है...

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17 JUL 2024 AT 23:11

महक उसकी गंगोत्री के शुद्ध पानी सी है,

मेरी ज़िन्दगी में वो खूबसूरत कहानी सी है.

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