लकड़ी का दरवाज़ा
तेरी आने की राह तक रहा है
खिड़कियां नजर गड़ाए बैठी है
पर्दों ने कितने दिनों से करवट नहीं ली है
कमरों में बंद पड़ी हमारी तस्वीरें
अब मुस्कुराना छोड़ चुकी है....
क्या एक बार लौट आओगे
फिर से गुलाबो में रंग भरने
उसकी टहनियों से कांटो को निकालने
आंगन में लगी तुलसी को सीचने
बेजान सी तस्वीरों को
मुस्कुराने के नए कायदे सीखाने
बालकनी के गेट पर लगे, ड्रीम कैचर में
कुछ नए सपनों को जोड़ने
क्या एक बार लौट आओगे
एक लड़की को फिर से दुल्हन सी सजाने
उसकी कलाइयों में कुछ चूड़ियां पहनाने
माथे पे उसके सुर्ख लाल रंग सजाने
एक बार फिर उसकी
हथेलियों में मेहंदी रचाने
क्या एक बार लौट आओगे
किसी की मुस्कान हाथो में लिए
सुकूून को बाहों में जकड़े हुए
श्रृंगार के सारे मायने
अपनी वर्दी कि जेब में समेटे हुए
क्या एक बार लौट आओगे
सूने मकान को फिर से घर बनाने के लिए
एक सुहागन को उसका वजूद लौटाने के लिए-
Nostalgia is a dirty liar..who says that things would be much better than this...!!!
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Her last message
"I wont disturb you anymore"
and the reality is
her text never disturbed me,
even
her absence does.-
जिस्म टटोलकर,
रूह ढुँंढता है
दिन में छुपकर,
जुगनू ढुँंढता है
मैं कहती हूँ,
अक्सर उससे,
क्यों?
सतह पर रहकर,
सदफ ढुँंढता है??-
बताओ मुझे
क्यूँ?
बोझ लगती हूँ मैं अब
क्या वाकई तेरे कंधे
मेरे वजन से झुक गये ?
भला जड़े भी कभी थकती है
अपनी ही टहनियों से
बताओ मुझे ?
मैं अपंग हूँ
तेरे कदमों की बैसाखी लगा
एक सफर का सट्टा लगा
इक जीत के लिए
सौ बार हारना नहीं पड़ता क्या
बताओ मुझे??
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क्यूँ है थका सा तू,
तेरा ही सफर है,
दौड़ना सीख
कभी रफ्तार से
कभी धीमी गति से
मंजिलों तक पहुँचना सीख
कली सा है तू,
खिलना सीख,
हर पल जिन्दगी के बाग में
महकना सीख
क्या हुआ ग़र जो तू लड़खड़ाता है
ज्वालामुखी ही पर्वत को हिलाता है
मत बाँध बेडिया अपन हीे पैरों में
वक्त आ गया है
बंधनों को तोड़ना सीख
हौसलों के पंख से उडना सीख
इक दिन जरूर जीतेगा तू
बस हार से जीतना सीख
मेहनत से ख्वाबों को चुमना सीख
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तू डूब जायेगा ग़र
मेरी गहराइयों को मापने चला तो...
बेहतर है
दूर से लहरों का इंतजार कर
तुझे छूकर जायेगा
ग़र तेरा हुआ तो...
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Hard to stay in touch,
as conversation starts with "hi"
and the very next,
it ends with "hmmm"-
लौट आ माँ,
बहुत वक्त हो गया,
तेरी गोद में सोये हुये।
लौट आ माँ
इक अरसा बीत गया
तेरी तसवीर को चुमते हुये।
कयी रातें गुजारी
तेरी याद में रोते हुये,
अब तो लौट आ माँ
इक उम्र निकाल दी
तेरे बिन,
साँसों को गिनते हुये।
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