"किसी भी स्त्री के लिए सबसे खूबसूरत पल होता है जब वो अपने पसंदीदा पुरुष के सीने से लगकर बेफ़िक्र हो जाए..उसकी पलकें हरकत करना बंद कर दें धड़कनें शांत हो जाएं और साँसें मद्धम...फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वो पुरुष पति है प्रेमी है भाई है या पिता..खूबसूरत बात ये है कि ईश्वर ऐसे पुरुषों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा ही देता है और जीवन में हारी हुई स्त्रियां अपने छले जाने की पीड़ा भूल फिर जीने की कोशिश करने लगती हैं । मन का बंजरपन खत्म होता है और मोह का बीज पड़ जाता है..बुद्धिवादी कहते हैं कि मोह में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि मोह हमें कभी मुक्त नहीं होने देगा पर मोह के बीज से ही तो प्रेम का अंकुर फूटता है और कालांतर में प्रेम के विशाल वटवृक्ष की छांव तले जाने कितने श्रान्त-क्लांत जन छाया पाते हैं। स्त्रियों को अपने सीने से लगाये ऐसे पुरुष सृष्टि की नींव में मजबूती का एक और पत्थर रख रहे होते हैं और अपनी पलकों को बंद कर उस पल को जीती हुई संसार की सबसे कठोर स्त्रियां पिघल उठती हैं। काँटों पर मौसम की आहट हुई प्रेम के नीले पुष्प खिल उठे ..बड़े दिनों बाद ये नीले फूल छली हुई स्त्री ने अपनी वेणी में धारण किये..कहते हैं समय हर घाव भर देता है, कमरे की दीवार घड़ी, डायरी के पन्ने जीवन की खिड़की..वक़्त सब जगह ठहर गया था मानो आज स्त्री को सब लौटा देने को आतुर हो..समय मुस्करा रहा था..स्त्री की ऑंखें नम थीं।"
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