Madhumayi   (©मधुमयी)
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Joined 21 February 2019


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Joined 21 February 2019
16 APR AT 18:36

आमार तुमी....
(मेरी तुम..)

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15 APR AT 18:17

"मन में इतनी प्रतीक्षा हमेशा बचाकर रखो
जहाँ कभी भी लौटकर आया जा सके.."

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13 APR AT 17:42

"कठिन है...
टूटे विश्वास को पुनः जोड़ना
क्योंकि विश्वास जब टूटता है तो
अकेला नहीं टूटता
टूटती हैं वो सारी संवेदनाएं महीन तंतुओं सी
जिनका ताना-बाना ही
हमें किसी से जोड़े रखता है.."

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10 APR AT 19:58

"मेरे आरिज़ हों और तेरी ज़ुल्फ़ के साये हों,
नीम बेहोश पलकों पे तेरे इश्क़ का ख़ुमार हो।

साँसों की गुफ़्तगू साँसों से इस क़दर हो ,
धड़कनें थम जायें बस मुहब्बत बेशुमार हो।।"

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8 APR AT 0:13

जन्मदिन की
असीम शुभकामनाएं
प्यारी मृणाल !
🎂🍫
💐💞

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5 APR AT 13:07

"क्या जीवन इतना नीरस हो जाता है कि
खुद से भी प्रेम करने की इच्छा न रहे.."

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2 APR AT 12:20

"किसी भी स्त्री के लिए सबसे खूबसूरत पल होता है जब वो अपने पसंदीदा पुरुष के सीने से लगकर बेफ़िक्र हो जाए..उसकी पलकें हरकत करना बंद कर दें धड़कनें शांत हो जाएं और साँसें मद्धम...फ़र्क़ नहीं पड़ता कि वो पुरुष पति है प्रेमी है भाई है या पिता..खूबसूरत बात ये है कि ईश्वर ऐसे पुरुषों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा ही देता है और जीवन में हारी हुई स्त्रियां अपने छले जाने की पीड़ा भूल फिर जीने की कोशिश करने लगती हैं । मन का बंजरपन खत्म होता है और मोह का बीज पड़ जाता है..बुद्धिवादी कहते हैं कि मोह में नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि मोह हमें कभी मुक्त नहीं होने देगा पर मोह के बीज से ही तो प्रेम का अंकुर फूटता है और कालांतर में प्रेम के विशाल वटवृक्ष की छांव तले जाने कितने श्रान्त-क्लांत जन छाया पाते हैं। स्त्रियों को अपने सीने से लगाये ऐसे पुरुष सृष्टि की नींव में मजबूती का एक और पत्थर रख रहे होते हैं और अपनी पलकों को बंद कर उस पल को जीती हुई संसार की सबसे कठोर स्त्रियां पिघल उठती हैं। काँटों पर मौसम की आहट हुई प्रेम के नीले पुष्प खिल उठे ..बड़े दिनों बाद ये नीले फूल छली हुई स्त्री ने अपनी वेणी में धारण किये..कहते हैं समय हर घाव भर देता है, कमरे की दीवार घड़ी, डायरी के पन्ने जीवन की खिड़की..वक़्त सब जगह ठहर गया था मानो आज स्त्री को सब लौटा देने को आतुर हो..समय मुस्करा रहा था..स्त्री की ऑंखें नम थीं।"

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27 MAR AT 20:30

"वे ख़त ..वे आँसू..
वे मौसम..वे साँसें..
गवाह हैं कि मुहब्बत में
कोई नहीं मरता..
बस! जीना भूल जाता है...।"

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15 MAR AT 11:45

"लोग कहते हैं कि वक़्त नहीं रुकता पर देखो न !
मैंने तुमसे बिछड़ने के वक़्त बेबसी से मुट्ठी बंद की
और वक़्त वहीं रुक गया..वो लम्हा क़ैद है मेरी मुट्ठी में ...
मैं देख रहा हूँ जुदाई के खौफ़ से ज़र्द हुआ
तुम्हारा चेहरा....तुम्हारे गालों पर
आँसुओं की बनती-बिगड़ती सूखी लकीरें जिनमें
बेपनाह मुहब्बत के इतने अफ़साने कि
ज़माना कहते-सुनते थक जाए मगर
इश्क़ में डूबे लफ़्ज़ों की थाह न पा सके..
जब तक लोगों की भीड़ में रहता हूँ
ये अफ़साने ख़ामोशी से मेरी धड़कनों से
लिपटे रहते हैं पर तन्हाइयों के आलम में
इनका हर लफ्ज़ किसी ज़िद्दी बच्चे सा
आसमान सिर पर उठा लेता है और मैं
बेबस सा उखड़ती साँसों के साथ
छटपटा कर रह जाता हूँ...
मुट्ठी खुल जाती है और वक़्त
बेरहमी से मुस्करा देता है ।"

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14 MAR AT 20:52

"मौन को पढ़ने के लिए
किसी लिपि की आवश्यकता नहीं
बस काफी है हमारी जाग्रत चेतना
जो दो जोड़ी आँखों के मिलने
और पलकें झपकने के बीच के ठहराव में
भावों का सम्प्रेषण समझ सके.."

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