****** ऐ सनम ******
तुम्हारी इन मधभरी आँखों से,
कौन बच पाया है, ऐ सनम ।
मैंने तो इकबार पिया था मय इनका,
आज तक नशे में झूम रहा हूँ, ऐ सनम ।।1।।
न जाने कितनी ख्वाहिशें छुपी है,
इन आँखों में, ऐ सनम।
मैं तेरी हर ख़्वाहिश बनकर,
रहना चाहता हूँ इनमें, ऐ सनम ।।2।।
मुझे निहारती उन आँखों के,
गुमनाम सवालों का ,ऐ सनम।
हसीन जवाब बनकर उनमें,
खो जाना चाहता हूँ, ऐ सनम ।।3।।
तू न दे ज़ख्म मेरी रूह को,
इन आँखों से, ऐ सनम।
अगर मैं बिखर गया तो,
बाकी न रहेगा कुछ तुझमें भी, ऐ सनम ।।4।।
तेरे आँखों के सहर का,
है ये असर, ऐ सनम।
मेरी छोटी सी जिंदगी,
हो गयी बसर, ऐ सनम ।।5।।
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