9 AUG 2019 AT 14:55

" जाकी रही भावना जैसी
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी "

अर्थात - आप जैसी मन रूपी दृष्टि रखेंगे आपको सृष्टि भी वैसी ही दिखेगा । दृष्टि को बदलना अपने वश में है परन्तु सृष्टि को नहीं । दृष्टि बदलते ही सृष्टि बदल जाती है ।
गुण व अवगुण सबमें है ।
जैसे किसी को पाषाण में प्रभु नजर आता है और किसी को पत्थर ।
जैसे किसी को अग्नि उपयोगी नजर आता है और किसी को विध्वंसकारी ।


- Lovely kumari