कवि प्रवीण कुमार गुमनाम   (प्रवीण कुमार श्रीवास्तव)
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Joined 14 February 2018


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Joined 14 February 2018

रोते हुए मुसाफिर की अदा क्या होगी । बता ए खुदा मुस्कुराने की सजा क्या होगी ।।

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कविता - शौर्य गाथा
वीर महावीर ना अधीर होते दिखते हैं ।
एकता अखंडता की अमर कहानी है ।।
काल विकराल बन रिपु को ना छोड़ते हैं ।
शैल खंड के समान अरि को बिछाते हैं ।।
चक्र के कुचक्र में जो फॅस जाते हैं कभी तो ।
अभिमन्यु के समान वीरगति पाते हैं ।।
ऐसे वीर सैनिकों का बार बार वंदन है ।
मातृभूमि के लिए जो शीश भी कटाते हैं ।।                                  

अभिमन्यु के समाने योद्धा जो खड़ा है आज ।
चहुं दिश कौरव ही कौरव दिखाते हैं ।।
ब्यूह की कुचाल को ना चलने से मानते हैं ।
शकुनि न पांशे अब फेंकते लजाते हैं ।।
दुर्योधन सुयोधन न सामने आते हैं कभी ।
शस्त्र किसी दूसरे के कंधे से चलाते हैं ।।
कायर ना छोड़े कभी आपनी कायरता को ।
भीम के समान वीर कौशल दिखाते हैं ।।
©® Praveen Kumar Gumnam

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अनुराग दीप
मन दीपक अनुराग ज्योति हो
ज्योति से ज्योति जला देना ।।
द्वेष कुटिल कलुषित चित्त को
सदा के लिए मिटा देना ।।
जहॉ कपट का ही प्रवाह हो
वहॉ शान्ति कैसे होगी
जहॉ नही अनुराग की धारा ,
कलह अशान्ति वहॉ होगी
गर सुखधाम बनाना चाहो
उर से इन्हें हटा देना ।।






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पेन्सिलों ने रंग भरे , तस्वीरें सँवर गयीं
छीलते रहे जिसे , कतरन बिखर गयी ।।

बचपन में एक भाव था , रंग भरने का भी चाव था ।
कहॉ खो गया वो बचपना , तस्वीर उतर गयी ।।

पेन्सिल निर्जीव पर , तस्वीर में भरती हैं प्राण
दर्द अपना भूलकर , तन से तो मर गयी ।।

स्वप्राण से करती , तस्वीर जीवित ,
अनुकरणीय उसका त्याग है ,दधीचि परमार्थ कर गयी ।

मैं बलिदान होकर ,चित्र में जीवित रहूँगी
नाम मेरा न रहेगा , दिल से भर गयी ।।

बलिदान व्यर्थ जायेगा , ये भी मैं जानती हूँ
निस्वार्थ भाव ही रहेगा , कौन कहता मैं डर गयी ।।

नाम चित्रकार उस चित्र पर लिख जायेगा
गम नही न रंज है, खुशी नन्ही अंगुलियॉ स्पर्श कर गयी,






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मै लोगों के बीच रह नही पाता हूँ
अपनी बात कह नही पाता हूँ ।।
खमोश सी लगती है जिन्दगी
क्योंकि औरों की तरह बह नही पाता ।।
जंग में जिन्दगी ज़ख्मी हो गयी
उन दर्दों को भी सह नही पाता हूँ ।।
अन्जानी दुनियॉ में पहिचान हो गयी
उन दोस्तों के बिना अब रह नही पाता हूँ ।।
दूर रहकर भी करीब लगते हैं वो
उनके सहारे से ही ढह नही पाता हूँ ।।

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अफसोस रहेगा हरदम ये ,
कानून चलाने वालों पर ,
जलाओ मशाल , लगा दो आग ,
दरिन्दों की हवेली में ,
अकेले चल सको न गर ,
चलेंगे एक टोली में

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रेलगाडी़ पेन्ड्रा स्टेशन रुकी । कुछ यात्री नीचे उतरे और कुछ सफर करने के लिए चढ़े । गाडी..,.

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विनोद खेत से लौटा तो चेहरे पर निराशा के बादल छाये थे , मगर ............
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