Kumar Saurabh   (कुमार सौरभ)
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Joined 6 December 2017


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Joined 6 December 2017
13 MAR AT 0:12

शामिल तू मेरे रात-दिन में सनम,
हाँ तुमको ही सुबह ओ-शाम लिखा।

बेचैनियों का सबब भी तुमसे सनम,
हाँ तुमको ही मैंने आराम लिखा।

रख दिया ताख़ पर सारे रस्मों को सनम,
हाँ तुमको ही मैंने रीति-रिवाज़ लिखा।

हर दुआ में फकत तेरा ज़िक्र है सनम,
हाँ तुमको ही मैंने नमाज़ लिखा।

जगरातों की धुन भी तुम से सनम,
हाँ तुमको ही मैंने अजान लिखा।

मंदिर का दीया भी तुम हो सनम,
हाँ तुमको ही मैंने रमजान लिखा।

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14 FEB AT 0:13

भर दिया है सारे पन्नो को,
तेरी तारीफों से मुसलसल,
इक मुद्दत से मैंने ख़ुद की ही,
खामियों को बेहिसाब लिखा।

अब तो कुछ भी होश नहीं,
कि और क्या-क्या लिखा,
शायद खुश्बू को तेरी इत्र और,
आँखों को तेरी शराब लिखा।

फकत बेकरारी का ही तो आलम है,
और तो कुछ भी नहीं,
मैंने आज भी अपनी गज़लों में,
ख़ुद को खार और तुझको गुलाब लिखा।

इक अरसा हुआ कि,
राख कर दिया है खुद की सारी हसरतों को,
कि तमन्नाओं की फ़ेहरिस्त में,
हर पल तेरा ही अधूरा ख़्वाब लिखा।

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5 FEB AT 22:02

लुत्फ दिया है जिंदगी ने हर सफ़र का मुसलसल,
कि इक मुद्दत से तराशा है कतरा कतरा मैंने खुद को।

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31 AUG 2023 AT 10:12

फ़िर तेरी निगाहें बनी हैं मेरे दिल की क़ातिल,
हाँ,क़ैद जुल्फों में रहने लगे फ़िर से,

पल भर की भी दूरी में जलता है दिल,
हाँ,तेरी बाहों में पिघलने लगे फ़िर से।

मुद्दतों के मौन पे जैसे इक विराम सा है,
हाँ, पंछीयों की तरह चहकने लगे फ़िर से।

साफ़ सा हो रहा है अब इश्क़ का आईना,
हाँ,आज बेतहाशा संवरने लगे फ़िर से।

पास तू हो की जैसे इत्र की इक लहर,
हाँ, तेरी खुशबू में बहकने लगे फ़िर से।

धूप में भी जैसे छाँव सा अब लगे,
हाँ,बे-मौसम बरसने लगे फ़िर से।

बेकरारी में भी राहत सी होने लगी,
हाँ,हर हद से गुजरने लगे फ़िर से।

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31 JUL 2023 AT 15:40

फिर मुसलसल बेकरार करेगा मुझे ये दिन,
फिर अपनी दास्तां सुनाएँगे हम सावन की रातों को,

फिर दर्द होगा मेरे सीने के आर - पार,
फिर मेरी आँखें हराएंगी इन बरसातों को।

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16 APR 2023 AT 22:54

When I'm with you,

The ocean appears serene like your eyes,

The Sun exhibits glitter like your face,

Nights bear resemblance to your cloudy tresses,

Cool breeze feels like your aromatic breath,

Orchid seems as delicate as your lips,

Rose smells like you,

and everything is poetry.

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3 FEB 2023 AT 17:07

फिर मैंने ख़ुद ही से इश्क़ तारी है,
हाँ फिर वही सफ़र जारी है।

फिर दिल में वही बेबसी है,
हाँ फिर वही बेकरारी है।

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3 FEB 2023 AT 13:00

Love is,
as fragile as a feather.
Also, Love is,
as robust as a rock.
It all depends upon
the durability of
string of affection
between the two souls.

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3 FEB 2023 AT 11:52

फ़िर मेरी रूह भटक रही है तेरी ही गलियों में,
शायद फ़िर आज मेरा दिल तेरी दरीचों पे बैठा है।

फ़िर सुलग रही है धीमी-धीमी तेरी याद मेरे सीने में,
शायद फ़िर आज दिल में इक तूफां सा उठा है।

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9 JAN 2023 AT 12:56

When I'm with you,

The ocean appears serene like your eyes,

The Sun exhibits glitter like your face,

Nights bear resemblance to your cloudy tresses,

Cool breeze feels like your aromatic breath,

Orchid seems as delicate as your lips,

Rose smells like you,

and everything is poetry.

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