Kumar Mohit   (कुमार मोहित)
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Joined 28 April 2017


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Joined 28 April 2017
30 SEP 2019 AT 21:23

पूरी कविता अनुशीर्षक (कैप्शन) में पढ़ें।

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7 DEC 2018 AT 7:05

जलराशि की खुली सतह से,
ऊपर आकर देख रहा,
अरुणोदय की प्रतिक्षा में,
शिथिल गगन को देख रहा,
हे प्रभात! तुम आ जाओ,
शिथिल गगन में छा जाओ,
शीतलता को सहता सुमन,
ऊष्मा की राह को देख रहा

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16 SEP 2018 AT 22:30

सज्जनता के अवशेष मिले,
अब केवल उन तहख़ानों में;
जो वर्णीत होते हैं विरले,
विज्ञान के अनुसंधानों में;
...

पूरी कविता कैप्शन में पढ़िए

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21 JUN 2020 AT 11:49

परस्पर प्रेम पनपा जब,
पिता और पुत्र-पुत्री में,
प्रभु ने प्रेम पल्लव तब,
ढ़का पतले से पर्दे में ।

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2 APR 2020 AT 22:31

अनुशासन से कर शासन वो,
जग में पूजित हो जाते हैं,
हैं राम सकल पौरुष का दंभ,
वनवास सहज सह जाते हैं।

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1 APR 2020 AT 7:34

शहर जब डूब जाता है,
तो बस इतना बताता है,


(पूरी कविता अनुशीर्षक, कैप्शन में पढ़िए)

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26 FEB 2020 AT 19:12

वक़्त बिखरे रेत सा,
हम कैद कर ना पाएंगे,
दिन बुरे हैं आज पर,
कल तो अच्छे आएंगे ।।

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11 FEB 2020 AT 9:06

मेरे हिस्से की कच्ची धूप,
को तुम सेंतते रहना,
मैं आती हूं अभी जाकर,
मुझे तुम देखते रहना,

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1 DEC 2019 AT 11:10

Kumar Mohit

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27 SEP 2019 AT 8:12

चिरागों को मयस्सर है,
अभी वो आखरी "रेशा",
कि जिसका साथ लेकर वो,
अंधेरा काट लेंगे।

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