Kumar Dharmi   (✍🏻-कुमार धर्मी)
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शिक्षक,लेखक & कवि
Joined 3 May 2020


शिक्षक,लेखक & कवि
Joined 3 May 2020
2 JUL AT 7:12

कर सकूँ मैं शुक्रिया अदा आपका,
मुझे वो अल्फाज नहीं मिल रहे।
मन-वीणा से फूट रही है शुक्रगुजारी की सरगम
पर उसे साध सकूँ मैं वो सुर-साज नहीं मिल रहे

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7 JAN AT 7:36

यार ने यार का भरोसा तोड़ दिया।
हँसी का गम से रिश्ता जोड़ दिया।
जिससे थी जिंदगी पाने की उम्मीद,
उसी ने मरने के वास्ते छोड़ दिया।।

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7 JAN AT 7:33

इक दर्द सीने में दबाए बैठे हैं।
इक ख्वाब आँखों में सजाए बैठे हैं।
हमे मोहब्बत है उनसे कितनी,
यह राज हम उन्हीं से छुपाए बैठे हैं।

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7 JAN AT 7:24

बंदिशों की जंजीरों में जकड़ा हूँ।
जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा हूँ।
है जज्बा तो सारे जहां से भिड़ने का,
पर अपनो की खामोश जिद से हारा हूँ।

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6 JAN AT 11:57

मत बांटो तुम बारह बीघा की पाटी आधी-आधी।
मौजूदा को ओर बढ़ाओ,रहो प्यार से राजी-राजी।।

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26 NOV 2024 AT 7:20

देश नहीं चलता यह
बाइबिल,गीता,कुरान से..!

चलता यहाँ लोकतंत्र
विश्व के सबसे बड़े संविधान से..!

ना रखो उम्मीद मानवता की
धर्म के जयकारे लगाते इंसान से..!

गर चाहते हो चैन-ओ-अमन
तो देश चलाओ पंथ निरपेक्ष विधान से..!

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15 NOV 2024 AT 7:43

"सामुहिक तीज-त्यौहार मनाने की परंपरा का सामाजिक सौहार्द, पारिवारिक एकता एवं आपसी भाईचारा बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान होता है।"

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26 SEP 2024 AT 7:53

लोगों को जिंदगी का सिर्फ बाहरी आवरण नजर आता है।
हृदय का भीतरी झंझावात किसी को नजर नहीं आता है।।

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25 SEP 2024 AT 21:42

रिश्तों की महफ़िल में सिर्फ,
मोहब्बत की अर्जी लगायेंगे।
पधारों कभी हमारे घर द्वारे,
आपको भी प्यार से कॉफी पिलायेंगे।।

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14 AUG 2024 AT 5:09

आजकल सड़कों से तारकोल ऐसे गायब हो रहा है,
जैसे बारिश में किसी नकाब का मेकअप धुल रहा है..!

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