शेखी बघारना.
तो तुम्हें याद रहा.
कौल निभाना
तो जैसे भूल गए .
मज़हब के नाम पर
बांट दी नफ़रत.
दु:ख-दर्द बांटना.
तो जैसे भूल गए ..
- Prof. Kr. Kanchan Singh
15 APR 2019 AT 9:39
शेखी बघारना.
तो तुम्हें याद रहा.
कौल निभाना
तो जैसे भूल गए .
मज़हब के नाम पर
बांट दी नफ़रत.
दु:ख-दर्द बांटना.
तो जैसे भूल गए ..
- Prof. Kr. Kanchan Singh