आंख में धूल झोंकना.
अदा सियासत की.
पैरवी. सच की अगर की.
तो क्या सियासत की.!
पता है सबको. झूठ की बरकत.
हैं दागदार. तो अंदाज़ बदलते रहिए.
चारा फेकें और तमाशा देखें.
अक्ल पर पर्दा. पड़ा ही रहने दें.
फर्ज़ से कुर्सी का क्या नाता.
मुस्कुराना है लाजिमी.
अदावत के लिए.
बात. नीयत की नहीं.
बात है आदत की ..- Prof. Kr. Kanchan Singh
27 SEP 2019 AT 9:54