6 OCT 2017 AT 16:14

गुरु ईश्वर की मुरत है।
गुरु ज्ञान की सुरत है।।
गुरु बिन घोर अंधेरा है।
गुरु से ही तो सवेरा है।।
गुरु ज्ञान के पालनहार।
भवसागर से तारणहार।।
गुरु शिक्षा के दर्पण है।
गुरु के लिए सब अर्पण है।।
गुरु जिनको मिल जाते है।
किस्मत उनके खुल जाते है।।
गुरु जीने का ढंग सिखलाते है।
जीवन का हर रंग दिखलाते है।।
जिसने गुरुकर्ज उतार दिया ।
उसने भवसागर को पार किया।।
सृष्टि की रचना है जब से ।
गुरु की महिमा भी है तब से।।
गुरु ईश्वर की महान हस्ती है।
यह जान भी गुरु दक्षिणा में सस्ती है।
अगली एवं अंतिम पंक्ति कविता का पुरा सार है।
गुरु माँ शारदे का साक्षात अवतार है।।

- राम किशोर सोलंकी