19 JUN 2018 AT 23:32

रहमतों के दरियाओं का समंदर आने दो,
इस डूबते आशिक़ का किनारा आने दो,
वक़्त की चादर को ज़रा मेहफ़ूज़ रखों,
बदल कर इस चाँद को सूरज पे आने दो।

- Kirtikayशर्माrahaहैं।