Kausar Hayat   (Kausar Hayat)
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Faqeer Hoon
Joined 21 June 2017


Faqeer Hoon
Joined 21 June 2017
13 NOV 2021 AT 2:06

मैं
तो एक गुल हूँ
टूटती हुई शाखों पर
मुझ को अपने आँचल में 
समेट कर क्या पाओगी
सर्द हवा के एक हीं झोंके में
तुम मुझसे बिछड़ जाओगी
मेरे हिस्से में नहीं तेरी ज़ुल्फ़ों में सँवर जाना
मुझ को ये भी नहीं मालूम है कहाँ मुझ को ठहर जाना
वस्ल और हिज़्र की उलझन में इश्क़ और अश्क़ की रूहों का
सुनते आये हैं के मुक़द्दर है आलम-ए-अर्वाह में मिल जाना।

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5 NOV 2021 AT 0:30

किसने
ये कह दिया तुम्हें
इश्क़ एक रिहाई है
मुझसे पूछो मैं जानता हूँ
इश्क़ और कुछ नहीं क़ैद-ए-तन्हाई है
अच्छा तुम नहीं मानती चलो ना मानो
उससे पूछ लो, वो जो तुम्हें अच्छा लगता है
उसे मालूम है इश्क़ एक बला है हिज़्र है जुदाई है।

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1 NOV 2021 AT 0:33

तुम्हें
जब भी
ख़्वाहिश हो आने की
तुम बारिशों के मौसम में हीं आना
मेरी धुंधली आँखों से बहता पानी
कोई देख न ले इसलिए तुम जब भी
आना बारिशों के मौसम में हीं आना।

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1 NOV 2021 AT 0:32

तुम्हें
जब भी
ख़्वाहिश हो आने की
तुम बारिशों के मौसम में हीं आना
मेरी धुंधली आँखों से बहता पानी
कोई देख न ले इसलिए तुम जब भी
आना बारिशों के मौसम में हीं आना।

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22 OCT 2021 AT 21:59

तेरे
वजूद से आये
किसी और की ख़ुश्बू
उस से पहले गले से लगाना मुझको
मैं जज़्ब कर लूँ तुम्हें ख़ुद में उम्र भर के लिये
फिर चाहो तो हिज़्र की बात बताना मुझको।

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17 OCT 2021 AT 23:55

और
जब तुम
वापस आओगे
फूल किताबों में सूख चुके होंगे
कोई ख़ुश्बू फ़ज़ाओ में न होगी
ज़मी ख़ुश्क हो रही होगी
अब्र आसमाँ के नज़ारे न होंगे
मगर फिर भी रंग चाँदी का बालों
में लिये एक शख़्स तुम्हारे इन्तेज़ार
में होगा, तो तुम आना, उस एक
शख़्स के लिये वापस आना।

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17 OCT 2021 AT 14:20

हमनें
माँगी थी
दुआ मर्ग की
असर ये हुआ के
इश्क़ हमनें कर लिया।

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17 OCT 2021 AT 2:32

ख़त में
ख़ुश्बू तुम्हारी थी
ख़त की बातें मगर हिज़्रराना थीं
अब इतने बरस बाद कभी कभी
मैं ये सोचता हूँ, कौन गुनाहगार है
मैं या तुम, नहीं नहीं तुम सब कुछ
तो हो सकते हो मगर गुनाहगार नहीं
शायद ख़ता मेरी हीं थी मुझे वो
ख़त पढ़ना हीं नहीं चाहिए था, मुझे
उस ख़त को आब-ए-गंगा में बहा देना था।

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15 OCT 2021 AT 21:13

तुम
एक मुक़म्मल रुबाई
और मैं लफ्ज़ हूँ अधूरा
हमारे दरमियाँ फ़ासले बहुत हैं।

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14 OCT 2021 AT 20:50

उसे
भी रोग लगे
इश्क़ का ख़ुदा करे
उसे भी मयस्सर न हो मौत ख़ुदा करे।

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