19 SEP 2017 AT 14:16

ख़ालीपन में अकेले बैठे,
यूँ भारी सी हो जाती है पलकें,
जैसे चटके हुए शीशे से,
ढलती रोशनी का धुआँ,
आँखों पर मल के,
शाम गुज़ार देता है कोई.
इसलिए रात को बुलाया है
साथ बैठने; रात भर.

- Q