ख़ालीपन में अकेले बैठे,यूँ भारी सी हो जाती है पलकें,जैसे चटके हुए शीशे से,ढलती रोशनी का धुआँ,आँखों पर मल के,शाम गुज़ार देता है कोई.इसलिए रात को बुलाया हैसाथ बैठने; रात भर. - Q
ख़ालीपन में अकेले बैठे,यूँ भारी सी हो जाती है पलकें,जैसे चटके हुए शीशे से,ढलती रोशनी का धुआँ,आँखों पर मल के,शाम गुज़ार देता है कोई.इसलिए रात को बुलाया हैसाथ बैठने; रात भर.
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