गरीब को चैन है कि अब खाना सिर्फ दो वक़्त का लाना है
बच्चे इस उम्मीद में है कि महीना खत्म होने पर ईदी मिलेगी...-
poetess by heart
Blunt , furious, rebel and highly feminist by nat... read more
ये जब देर रात घड़ी में 3 बजते है ना
बस उसी वक़्त मन होता है कि
बारूद के ढेर पर बैठ
सिगार का एक कश सुलगाते हुए
विदा लैलूं इस फरेबी दुनिया से ....-
मेरी मोहब्बत अब तक मुक्कमल क्यों नही ये जानना चाहो तो सुनो ,
वो रोज़ेदार है पक्के ईमान का ...
ये वक्त रमदान का है
मैं पानी की वो घूंट हूँ जिसे वो लबो से तो लगा सकता है
फ़क़त गले नही उतार पाएगा ।।
क्योंकि वो काफिर नही और मैं खुदगर्ज़ नही ।।-
तुझे खुदा मान , पा लिया तुझे
फिर मैं काफिर हो गयी,
तुझे जबसे मन्ज़िल माना है
कमबख्त मैं मुसाफिर हो गयी ।।-
कमबख्त इस शहर में तो तूफ़ां भी आते आते लौट गया
कहने लगा शहर तो पहले ही बर्बाद है मैं क्यूँ बदनामी सिर माथे लूँ अपने-
मैं सिर्फ तब तक ही ठीक हूँ
जब तक कोई ये ना पूछ लें कि मैं कैसी हूँ ...!!!!-
''मैं डरती हूँ,,
जब जब ख्याल तुम्हारा आये
तुम्हारे जाने का डर सताए
जाने क्यूँ खुदा का सज़दा मैं करती हूं
तुम्हे खोने से मैं बहुत डरती हूँ
तुम्हे मैं बताती नही
कुछ सपने भी देखे है ये जताती नही
रोज़ दर रोज़ रंग उनमे मैं भर्ती हूँ
उनके टूटने के डर से भी डरती हूँ
हाँ मैं अपना कल तुम संग चाहती हूं
ऐसा कुछ नही है तुम्हे येही बताती हूँ
अपने आज से अपने आने वाले कल का सौदा करती हूं
कहीं सब कुछ पाकर भी खुद को ना खो दूँ इस बात से डरती हूँ-
"मुलाकात,,
तुम संग मेरी कोई मुलाकात मैं भुलाये नही भूलती
तो जब अगली दफा मिलो मुझे बिना किसी जिस्मानी पर्दे के ,
तो मुझे बताना लिख कर वो सारी बातें मेरी कमर पर,
मेरे जिस्म को छूते हुए जो उतरेगीं मेरी रूह में ,
मैं पड़ूँगी उन्हें हर्फ़ दर हर्फ़ उसी तरह ,
जिस तरह एक बच्चा सीखता है क़ुरान-ए-शरीफ पढ़ना ,
और याद रखता है उसे कयामत के दिन तक ,
क्योंकि तुम संग कोई मुलाकात मैं भुलाये नही भूलती ।।।-
इसके बाद तुझे और क्या ही दुआ दूँ
खुद करे तेरी वो दुआ भी कबूल हो
जिसमे तूने मुझे ना मांगा हो .....-