तुम क्यूं सोचती हो ऐसा,
क्यूं खुद को कमतर समझती हो
क्या फर्क पड़ता हैं तुम्हे
क्या सोचते है वो तुम्हारे बारे में
क्या सच में जानते हैं वो तुम्हे
तुम्हें खुद नहीं पता खुद का,
कि कितनी बेशकीमती हो तुम
जब तुम खुद ही नही जानती हो,
अपनी खुद की खूबियां और खामिया ,
फिर क्यूं उन चंद करीबियों की बातों
को तुम इतना बढ़ावा दे बैठी हो ,,,,,,,,,,
क्यूं खुदको तुम ऐसे सौप बैठी हो,
क्यूं तुम उनपर इतना भरोसा कर बैठी हो,
कभी तो खुद पर विश्वास कर के देखो ना,
कभी तो खुद से भी प्यार कर के देखो ना,,,
इस आत्मविश्वास के आइने में एक बार
खुद को उतार कर तो देखो ना,,,,,,,,,
एक बार ही सही ,पर खुद पर विश्वास
कर के तो देखो ना,,,,,,,,,,
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