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सुनो... तुम्हें तो पता हैं न...
एक दूरी के बाद मुझे धुँधला दिखने लगता हैं... अब वो दूरी कितनी हैं... मैं बताने में असमर्थ हूँ लेकिन ये तुम्हारी ही जिम्मेदारी रहेगी कि ना जाओ तुम दूर इतना मुझसे की धुँधले लगने लगों मुझे...-
जब किसी अकेले रहते व्यक्ति के पास.. कोई ठहरने आया हुआ... जाता हैं लौट कर... तब वो ज़रूर अपनी मंजिल की ओर चलते हुए बीते हुए पलों को बिसरा बैठता हैं... किन्तु जिनको वो छोड़ कर आता हैं... वो रस्ता निहारते हुए बीते दिनों में चले जाया करते हैं और अकेले हो जाया करते हैं... फ़िर से...
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मेरे लिए
बंद पिंजरे में कैद
कोई आजाद पंछी रहा है ....प्रेम
जिसे उड़ना कभी
आया ही नहीं
बस पंख फड़फड़ाता
और आँखे मूँद कर
उस आकाश की सैर कर आता
बंधन में अपने जीवन को
समर्पित करना रहा..... प्रेम-
मैं ग़र ना मिलूँ तुम्हें कहीं
तो ढूंढना तुम मुझे
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घर के चौखट पर लगे मेरे हाथ के कुमकुम के छापे में
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आईने पर लगी उन चटक लाल बिंदी में
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घर के आँगन में मेरे पैरों से पड़े महावर के निशान में
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और फ़िर भी कहीं न मिल पाऊँ तो ढूंढना
तुम्हारे... स्मृति में-
अब जब देखूँ तुझे... तो लगे जैसे उस चाँद का एक नूर है यहां
खुदा आया था हाथ बढ़ाने, लेकिन कह दिया मैंने मेरा गुरूर हैं यहां-
जिस प्रेम में आपको स्वयं को प्रमाणित करना पड़े
वो प्रेम नहीं हो सकता... वो तो खुद से किया गया मात्र एक छल हैं-