मौहब्बत देख ली है आँखों में
आँखों में बातें कर रक्खी हैं
अब ज़ुबाँ कि ये औक़ात नहीं
कि इन बातों से मुकर जाए
कुछ ख्वाब संजोये बैठी हैं
कुछ याद बसी है आँखों में
पर काल कि ये करनी ही नहीं
कि बीत के कल, कल फिर आए
कभी सागर जल सी भरी हुई
कभी आँख खला सी है खाली
कुशलताएं ये चंचल मन की
बस आँखें ही दिखला पाये
हो काक चेस्टा जो मन की
तो बगुला ध्यान भी हो जाये
आँखों सा कपटी न कोई
सच्चा भी न मिल पाए
मोहब्बत है मोहब्बत से
मोहब्बत की बातें हो जाये
हैं डाकियाँ ये आँखें वो
जो खुद चिट्ठियों पे रो जाए
मोहब्बत देख ली है आँखों में...
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