तपती धरती और जलती दुपहरी ने
मेरे रस सोंख लिए,
और सितम जब पतझड़ ने ढाया,
मेरे अपने मुझेे छोड़ गए यारों...
वर्ना मेरे साये में भी,
लगा करता था मेला,
शाम,सुबह या हो दोपहर का बेला...
कल तक सब साथ थे मेरे,
पर आज जब वक़्त बदला और हालात बदली,
इस मतलबी ज़माने में,
मैं रह गया हूँ,
लाचार और सिर्फ अकेला...
वाह रे ! मतलबी दुनियां और दुनियावाले,
क्या गज़ब ! तुने साथ निभाया है,
रस्म सारे ज़िंदा है यहाँ,
बस इंसानियत को दफनाया है...
- © "जिज्ञासु"