गुफतगू पलकें झुकाकर जितनी चाहे तुम करोपर कभी क़ातिल निगाहों से न तुम देखा करो - Ayaaz saharanpuri
गुफतगू पलकें झुकाकर जितनी चाहे तुम करोपर कभी क़ातिल निगाहों से न तुम देखा करो
- Ayaaz saharanpuri