मैं शायद तुझसे कभी कह न सकूंगा कि मुझे तुझसे मोहब्बत है,
खैर अब तो तूने पढ़ लिया, अब क्या जरूरत है।-
Not an Atheist.
Not a Theist.
Not in the Middle.
Makings things u... read more
मैंने जो कुछ भी वादा किया है वो मैं वक्त आने पे कर जाऊंगा,
तू एक मीठा जहर है और तुझे पीकर किसी दिन मैं मर जाऊंगा।
चाहता हूं तुम्हें और बहुत चाहता हूं, और ये तो तुम्हें भी पता है,
हां अगर मुझसे पूछा किसी ने तो मैं सीधा मुंह पे मुकर जाऊंगा।-
खुदा आप को ऐसी जिंदगी दे कि आपकी कोई इज्जत न हो,
किसी और को आपको सही या गलत कहने की इजाजत न हो।
भीड़ में भी आप चल सकें अकेले किसी और की जरूरत न हो,
आप को सही या गलत ठहरा सके जमाने की ऐसी हिम्मत न हो।-
वो चाहता है किसी को उस पे शक न हो;
चाहे हमारी बात, मुलाकात बेशक न हो।-
उम्मीद है सुबह तुम आओगे पर ये रात लंबी है,
बाढ़ में फंसा हुआ सा हूं मैं और बरसात लंबी है।
मैं कैसा हूं तुम्हारे बिन जरा मुश्किल है ये कहना,
मोहब्बत का मोहताज हूं और खुशियों की तंगी है।-
तुझे चूमके मैं खुद को जला लूं,
तेरे होठों पे मेरे धुएं का स्वाद रह जाए;
अपनी चाहत की आग से सुलगा दूं ये हवा,
ये रात जलकर राख-राख हो जाए।
मैं कर दूं कुछ ऐसा ये दुश्वारियां,
मजबूरियां, सब दूरियां हो जाएं तबाह;
मिट जाए जो भी अब आए हमारे दर्मियां,
चाहे तेरे सिवा दुनिया में सब कुछ बर्बाद हो जाए।-
खुदा खुद अपनी खुदी से खुदाई तक एक बेखुदी में गुम है,
और तुम मुझसे पूछते हो मेरी बेखुदी की वजह क्या है?
मैंने की अहल-ए-वफा कायदों के खिलाफ तो मैं मुजरिम,
तो ये भी बता दो इन मोहब्बत के दुश्मनों की सजा क्या है?-
जिंदगी के मसले तो कुछ हल होते से नहीं दिखते,
जिंदा हूं क्योंकि तुझसे मिलकर मैं अपने गम भूल जाता हूं।-
बचपन से मैंने तुझको कई रंगों में देखा है।
रंग,कभी मासूमियत का तो कभी शरारत का।
कभी मोहब्बत का तो कभी रूबाइयत का।
कभी तेरे रंगों से मैंने खुद को सजाया भी।
कभी तेरे रंग में रंगने से खुद को बचाया भी,
कभी दिल लगाया,कभी तेरा दिल दुखाया भी।
कभी कुछ झूठ भी बोले,थोड़ा धोखा भी किया।
फिर खुद को सजा भी दी और सताया भी,
दिल का अपने तुझको मैंने तोहफा भी दिया।
कितने दिन तेरी याद में मायूसी में गुजारे,
रात-रात भर ख्वाबों में मैंने तुझको देखा है।
बचपन से मैंने तुझको कई रंगों में देखा है।
ये कौन सा रंग है जिसमें तूने मुझको रंगा है?
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हजारों बार ये मन सोचता है तुझे चाहूं या ना चाहूं,
दिल-ए-नादां का कहना है बात अब अपने काबू से बाहर है।
मन तो पागल सा है, यूं ही बहकता है, मचलता है,
दिल में तूफां सा उठा है, हालात अब अपने काबू से बाहर है।-