योग कर्म की कुशलता
ज्ञान से जो ज्योति जले, समता का जो दीप,
सुकृत-दुष्कृत से हो परे, मन निर्मल और गीता की रीत।
सुख-दुख का संग जब त्यागे, मन में हो संतोष,
कर्म के पथ पर बढ़े निरंतर, छोड़ दे मोह का दोष।
निष्काम भाव से कर्म करो, न फल की इच्छा में उलझो,
योग ही वह राह है, जिसमें हर सत्य को खोजो।
बुद्धि से जो युक्त हो, वही जग में ज्ञानी,
योग कर्म की कुशलता है, यही गीता का वाणी।
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तुम्हारे अंधेरे मिटाने के लिए
मैं, तुम्हारी रोशनी बन जाऊं
मेरे शोर को घटाने के लिए
तुम, मेरा सुकून बन जाओ-
पढ़ना है मुझे तो
वहां से पढ़िए
जहाँ से मैं खामोश हूँ
हंसना हंसाना तो मेरा हुनर है-
तुम लाख झालरे लो
अपनी घरों की दीवारों पर.......…...
पर याद रखना
रोशनी तो हमारे आने से ही होगी
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डर के आगे ना झुके,कुछ करने रखता है दम
जीतेगा वो दुनिया
बस हिम्मत से रख कदम-
की तुम
अपने भीतर रावण को
मारो या ना मारो
पर अपने भीतर जो बैठे हैं
"राम "
उसे जरूर पहचानो-
शिक्षक जो जीवन को बदलें,सवारे, निखारे
जो नरेंद्र को विवेकानंद बना दे
रूपांतरण कर दे
अंधेरे से प्रकाश में भर दे
नासमझी को विवेक में बदले
व्यक्ति को व्यक्तित्व में
चरित्र को चरित्रवान में
इंसान को भगवान में
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गुरु जो जीवन को बदलें,सवारे, निखारे
जो नरेंद्र को विवेकानंद बना दे
रूपांतरण कर दे
अंधेरे से प्रकाश में भर दे
नासमझी को विवेक में बदले
व्यक्ति को व्यक्तित्व में
चरित्र को चरित्रवान में
इंसान को भगवान में
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कॉलेज अब पहले से ज़्यादा हरा भरा हो हुआ है सब तरफ़ एंट्रेंस से लेकर बाटनी लैब के सामने ,हाल के सामने चारों तरफ़ हरा भरा गार्डन विकसित हो गया है
बहुत ही खूबसूरत वातावरण है सब है
पर पहले की तरह कॉलेज में अब उमंग भावना नहीं रही कोई
कोई कवि नहीं रहा “कविता” नहीं रही
सब कुछ है जाने क्यों “चेतन” नहीं
न “हेमा”है न हेमंत”है
“नीत”.नई “आशा”उत्थान की और “अनीता”है
“अरविंद” खिलने को बेचेंन है इस धरा पर फिर भी” अंतिम”होने में सदिया लगेगी
कितने रहस्य कितने संदेह
कितना वैभव कितना ऐश
फिर भी व्याकुल क्यों है नरेश”-