कुछ कहों ना
कि कुछ सुनने का मन करता है कभी कभी
की वो बाते वो लफ़्ज़ जो शायद कभी तुम रोज़ कहते थे
और मैं रोज़ सुनती थी
मगर अब ना तुम कहते हो ना मैं सुनती हूँ
तो कहों ना
कि आज कुछ सुनने को मन कर रहा है
ज़िम्मेदारियों के तले दब से गये है
कि कुछ हूं इनसे अलग मैं तुम्हारे लियें
कि कुछ कहों ना आज कुछ सुनने को मन कर रहा है ।
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