Girish Mishra   (गिरीश मिश्रा)
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लाचार है वो शख्स जो मोहब्ब्त में है
ऐसा मिले कोई तो उसे बाहों के दयार दें।
Joined 1 March 2019


लाचार है वो शख्स जो मोहब्ब्त में है
ऐसा मिले कोई तो उसे बाहों के दयार दें।
Joined 1 March 2019
8 JAN 2023 AT 18:19

तुमने अपने पांव तो देखे रास्तों पे
ये ना देखा कौन कांटे हटा रहा है।

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5 JAN 2023 AT 21:57

मेरे इलाज की दवा ये है कि
कुछ दोस्त मुझे आजमाने हैं।

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10 NOV 2022 AT 21:07

इस जन्म में अभी बहुत कुछ घटित होना है....
अभी तुम मुझसे दूर गए हो
अभी तो बस हम बिछड़े हैं
अभी रात अमावस लग रही है
अभी चांद में तुम दिख रहे हो
अभी मन को आशा है आओगे तुम
अभी तुमको सचमुच खोना है
इस जन्म में अभी बहुत कुछ घटित होना है...

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8 NOV 2022 AT 21:07

सातवां दिन गतिमान है वर्तमान में
इस दिन में मेरा पूरा जीवन है
ये छह दिन तो पूर्व जन्म थे मेरे
स्वभाविक है इस जन्म भी तुम नही मिलोगे
साथ जन्म का ही तो फेरा है ना
तो अगले जन्म मतलब तुम मेरे हो।

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8 NOV 2022 AT 21:02

छठा दिन नहीं था रात थी
और रात भी अमावस की थी
सवेरा कब होगा तुम जानते थे बस
मुझे तो स्मृतियों को जगाना था
शुरू से अब तक का सफर दोहराना था
शायद कुछ छूट गया हो।

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8 NOV 2022 AT 20:52

पांचवे दिन अपने गुप्तचर भेजे
प्रेम की अनन्त गुफाओं में
कि कहीं तो रोशनी दिखे
और वो आकर बताएं मुझे
कि तुम मिल गई हो उन्हे
और ख्याल रखा कि तुम्हे पता ना हो।

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8 NOV 2022 AT 20:41

चौथे दिन बस थकान मिटाई सफर की
चिड़ियों से बाते की दिन भर
और ख्यालों के घोसलें बनाए
हमारी कहानी से मिलती कोई फिल्म देखी
कुछ गजलें सुनी कुछ शेर गुनगुनाएं
दिन भर में ये जाना तुम मेरी कविता हो।

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8 NOV 2022 AT 20:33

तीसरे दिन तुम्हे खोजने निकला
हर जगह जहां छांव दिखी मुझे
उस जगह जहां जुगनू इकठ्ठे हो बहुत
जहां रात को बरसात हो रही हो
जहां समंदर पानी ले रहा हो नदी से
जहां से सूर्य ताप लेकर निकलता हो।

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8 NOV 2022 AT 20:21

दूसरे दिन किरदार रचे मैंने
जो रहेंगे इस ब्रह्माण्ड में
दिन रचा रात भी रची
फूल खुशबू नदी पहाड़ रचे
और रचा ऐसा मौसम जहां
हर घड़ी बर्फ गिरती हो।

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8 NOV 2022 AT 20:16

पहले दिन सभी चिठ्ठियां पढ़ी तुम्हारी
हर शब्द दोबारा पढ़ा बहुत गौर से
जैसे पत्र नहीं कोई सोध हो
और अविष्कार होना हो इससे
एक नए ब्रह्माण्ड का
जहां नियम तुम्हारे चलते हों।

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