एक बात कहूँ, मैं तुम्हारे बिना बिल्कुल अधुरा हूँ, यार।।
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मेरे खुशियों को छिननेवाले तुम मुझे कब तक रूलाओगे।
मेरे हिस्से का जमीन कब तक छिनोगे।
तुम मुझे कब तक सताओगे।।
मेरे दूनिया मे आग लगानेवाला।
तुम मुझे कब तक रोकोगे।
मैं हर हाल मे हँस कर दिखाऊँगा।
तुम बनते रहों मेरे राहो का पत्थर।
मैं फिर भी तुम्हें जीत कर दिखाऊँगा।
ना हारा हूँ ना हारूँगा, मैं एक दिन जरूर मुस्कुराऊँगा।।-
नाम हैं मेरा गौरव हम किसी से कम भी नहीं हैं।।
किसी चीज़ का डर नहीं हमें।।मर जाने का गम भी नहीं हैं।।
रक्षक मेरे शंभु हनुमत मेरे साथी हैं,और किसी का साथ नहीं,बस इतना ही काफी हैं।।-
बिछड़ना कौन चाहता हैं अपनो से।
यह तो बस एक मजबूरी होती हैं।।
कभी घर की माली हालत,
तो कभी पैसो की जरूरी होती हैं।।
और कोई पूछे तो मेरी हालत
यहाँ कैसे जीना होता है।।
अपनो से बिछरकर घूट घूट कर रोना पड़ता हैं।।
यहाँ तो महँगे पकवान भी फिके लगते हैं।।
माँ के हाथो की रूखी सुखी रोटी भी प्यारी लगती हैं।
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ऐ जिन्दगी मैं क्या करूँ तुम्ही बताओ?
मैने किसी का कुछ बिगाड़ा हैं क्या?
शब्दो से कठोर हूँ यह माना,पर मैने किसी का घर उजारा हैं क्या?
मैंने कोशिश कि हैं हर जलते दिए को बुझने से बचाने की।
पर मैने किसी कोमल पेड़ के टहनियों को उखाड़ा हैं क्या?
खुद झेले है हर मुसीबत मैंने,
पर क्या कभी किसी को मुसीबत में डाला हैं क्या? फिर क्यूँ मुझे ही अक्सर तुम हताश करते हों।
मैं तो सबको हँसाने का अक्सर प्रयास करता हूँ।
फिर क्यूँ बेवजह हमेशा तुम मुझे ही निराश करते हों।।
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मानता हूँ चुर हूँ मैं खुद के ही गुरूर में।
जानता हूँ,हूँ नहीं तुझ सा मशहुर मैं।
हैं पता मुझे भी यह,हैं दुरियाँ बहुत बड़ी।
मैं खाक हूँ मै,मैं राख हूँ,मगर मेरी हैं जिद्द बड़ी।
जो ख़्वाहिशे दबी पड़ी थी मेरी जिश्मों जान में।
उन ख़्वाहिशो को पुरा करने निकला हूँ मैं आन में।
फिज़ुल की हर बात सें हैं बच निकलना अब मुझे।
सुलग सुलग कर रह गया,अब धधकना हैं मुझें।
अंधेरो के रूख छोड़कर,निकला हूँ प्रकाश में।
एक दिया सा जल सकूँ,मैं भी उस आकाश में।-
बहुत सताती हैं मुझे दूरिया उनकी जो दिल के बहुत करीब होते हैं।।
और इसी डर से हम लोगो से नजदिकिया कम रखते है।।
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चाहत नहीं हैं तुम्हें छेड़ने का मुझे।
दिल मे बस एक कश्मकश हो रहीं हैं।।
तुम बच के ही रहों मेरे निगाहो से तो बेहतर हैं।
ना जाने क्यूँ तुम्हे देखने की बड़ी आरजू हो रहीं हैं।।-
मैं मोहब्बत भी सिद्दत से ।
नफरत भी सिद्दत से करता हूँ।
और मुझसे बगावत मत किया करो।
मैं बगावत भी बड़ी सिद्दत से करता हूँ।।
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मुझे तेरा साथ चाहिए।
मेरे हाथों में तेरा हाथ चाहिए।।
तेरे लबों पे मेरा नाम चाहिए।।
तेरे दिल में मेरी धड़कन चाहिए
तेरे होथों पे एक मीठी मुस्कान चाहिए।
मुझे कुछ नहीं सीवाए तुम्हारे
मुझे सिर्फ और सिर्फ तु चाहिए।।-