गौतम पारस   (Gautam Paras)
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Joined 9 May 2017


Joined 9 May 2017
5 FEB 2020 AT 14:42

बात बात मा अड़े हैं लड़िका,
जर्दा मुँह मा धरे हैं लड़िका,
सस्ता है नेटकॉल का खर्चा,
बिस्तर माही डरे हैं लड़िका।
स्क्रीन चूमत पड़े हैं लड़िका।।

इसको हाय, उसको हेलो,
क्या कर रही हो,कुछ तो बोलो,
मर जाऊंगा तुम बिन जाना,
ऐसी बातें करे हैं लड़िका।
स्क्रीन चूमत पड़े हैं लड़िका।।

हाँ मम्मी लाइब्रेरी से लौटा,
या फिर कॉलेज जाने को लेट,
पूरा टाइम कैंटीन में बीते,
शायद मिल जाये उनसे डेट,
झूँठ की फैक्ट्री बने हैं लड़िका।
स्क्रीन चूमत पड़े हैं लड़िका।।

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15 JUN 2019 AT 8:20

कैप्शन में पढ़े कविता

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12 MAY 2019 AT 2:15

तुम मेरे दिल में पल रहा

वो सबसे मासूम ख्वाब हो

जिसकी तस्वीर सदियों से ढल रही थी

और फिर तुम बनी

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6 APR 2019 AT 14:14

कभी तुम किसी
ऊंचे पर्वत शिखर पर बैठ जाना,
बिन दूरबीन
भूल जाना कि तुम्हे लिखना भी आता है,
वहां से महसूस करना कि
तुम्हारे लगाए फूलों से ऊपर तक कितनी खुशबू है,
तुम्हारे बोए कांटों में से क्या
एक कांटा पर्वत का शीर्ष बिंदु भी है,
तुम महज शब्दों के मदारी तो नही
सोचना
जिंदगी बहुत बड़ी है
सोचना
क्योंकि
सोचना जरुरी प्रक्रिया है अभी इस समय पर।

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13 MAR 2019 AT 1:50

मेरे देश वालों हमारी ज़मीं पर
हमारे ही घर की कुछ एक कमी पर
जहर का बीज जो बोओगे सुन लो
अपनो से लड़कर जो खोओगे सुन लो
मम्मी मरे या कोई का अम्मी मरें
या फिर चाहे कोई का बहिनी मरें
पापा मरें या कोई का अब्बू मरें
या फिर चाहे कोई का चाचू मरें
मौसी मरें या कोई का खालाजान मरे
या फिर चाहे कोई का भाईजान मरे
न हिन्दू मरेगा न मुसलमान मरेंगा
घुट घुटकर हमारा संविधान मरेंगा

जो कीड़े लगे हैं हमारे परों में
जिनकी नज़र है हमारे घरों में
जो घुसपैठिये हैं और नजर गलत हैं
जिनकी उंगलियों से इशारे चलत हैं
जो भाषणों मे अपने जहर है मिलाते
जो धर्मांध हम सब पर कहर हैं बरपाते
जो जमीर को कौड़ियों में बेचे पड़े हैं
जो सफेद पोश पहने बस लूटे पड़े हैं
फेक न्यूज़ वालों को सबक सिखा दो
अपने घर में दीमक के टीले उड़ा दो
जो हमको ही आपस मे छांटने चले हैं
उन्हें मार ही डालो जो बांटने चले हैं

अपनो में इतना प्यार बांट लो
के पूरा का पूरा संसार बांट लो
न कोई किसी को बुरा कहेगा
न साथ कभी ये अधूरा रहेगा
गर काम हम सब ये अच्छा करेंगे
फौज ही क्या हम सब रक्षा करेंगे
हो पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण
डंका बजा दो के हम हैं नही भिन्न
तब दुश्मन भी हमसे प्रीत रखेगा
नही कोई उम्मीद-ए-जीत रखेगा
न हिन्दू रहेगा न मुसलमान रहेगा
हिंदुस्तान ही बस अपनी आन रहेगा

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28 FEB 2019 AT 18:25

तेरी तस्वीर को हूबहू कैसे कह दूँ,

कुछ बाकी बाकी सा रह जाता है।

तिल को लिखूँ कातिल जरा, 

कजरा रूठ जाता है।

केश को गर लिखूं बादल भरा, 

झरना रूठ जाता हैं।

गर नयनो को झील कहूँ तो,

मृगनयनी रूठ जाती है।

कहूँ रुक्सार को चंदा कहूं तो,

रातरानी रूठ जाती है।

गोद को कहूँ जन्नत तो, 

दिल की मिन्नत रूठ जाती है।

हुस्न को कहूँ उल्फत तो,

दिल की धड़कन रूठ जाती है।

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21 FEB 2019 AT 19:40

मेरी बोली अछूत नही है
न ही अंग्रेजी कोई ब्राम्हण

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19 FEB 2019 AT 19:57

योद्धा युद्ध करते हैं
योद्धा सरहदों की सीमा तय नही करते
और सरहदों की सीमा तय करने वाले युद्ध नही करते
योद्धा शहीद होते हैं वतन पर
सरहदों की सीमा तय करने वाले या उनके परिवार का सदस्य कभी भी शहीद नही होता
क्यों भाई क्यों शहीद होने का गौरव नही चाहिए वतन पर
योद्धा नही जानते उनका धर्म क्या है
उनकी जाति क्या है
उन्हें युद्ध करना उनका धर्म और देशप्रेम उनकी जाति सिखाई जाती है,
वहीं सरहदों की सीमा तय करने वाले सब जानते हैं
कि किसकी क्या जाति है
और कैसे उनका धर्म है सिर्फ लोगों को
उनकी जाति बताना

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19 FEB 2019 AT 19:03

यूँ भर रहा हूँ आँखों मे हर रोज थोड़ा थोड़ा,

दिन कर रहा हूँ रातों में हर रोज थोड़ा थोड़ा,

दिल मानता ही नही के तेरी तस्वीर दूर कर दूँ,

मैं जल रहा हूँ आहों में हर रोज थोड़ा थोड़ा।

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31 JAN 2019 AT 21:15

एक प्यार भरी कविता

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