22 OCT 2017 AT 18:39

कुछ चेहरे लिए पैदा हुए, कुछ खुद ही यूँ तराशे भी हैं
कुछ मुखौटों में चेहरे छिपे, कुछ चेहरों में भाव नाकाशे तो हैं।
हम क्या थे और क्या बन गए, ये सवाल शायद बेबुनियाद हैं
अतीत का सोचु भी तो, एक लोरी और एक हंसी ही तो याद है।
शायद एक मुखौटा हर किसी के लिए ही बनता है,
शायद वो चेहरा ही तो है जो खुद मुखौटा चुनता है।
रंजिश कहो या बंदिश ही सही, क्या फर्क पड़ता है
पहले इंसान मुखौटे चुनता है, फिर सिर्फ उसी की सुनता है।

- Gaurav Sharma