कन्हैया, मेरी प्रेम-कहानी आज भी कुछ अधूरी है ना साथ में राधा है अब ना होठों पर कोई बाँसुरी है मगर जब चाहा ही है राधा को कन्हैया बनकर फिर ताउम्र यमुना किनारे इंतजार करना जरूरी है
राहत इंदौरी ग़ज़ल के कहन का अपना ऐसा अंदाज की एक-एक लफ्ज़ को अपने हाव-भाव में ढालकर जीवंत कर देने वाला शायर (इस युग का 3D शायर)
सरल शब्दों में गहरी बात कहने का हुनर रखने वाला, ग़ज़ल का हरफनमौला राहत इंदौरी कोई आदमी नहीं बल्कि हिंदी-उर्दू ग़ज़ल के चलते-फिरते विश्वविद्यालय रहे हैं
मुझे एक बार इनके सामने बैठकर इनको सुनने का सौभाग्य मिला है
है कौन जहाँ में, जो मोहब्बत से बड़ी दौलत कमा सका है आँख हो या दिल हो, दोनों में एक ही चेहरा समा सका है लगे हैं खैर अब सभी उसी चेहरे को भूल जाने की कोशिश में मगर ये सब कोशिशें नाकाम है, भला कौन किसे भुला सका है
कहो कि कैसे झूठ बोलना सीखूँ और सिखलाऊँ ? कहो कि अच्छा-ही-अच्छा सब कुछ कैसे दिखलाऊँ ? कहो कि कैसे सरकंडे से स्वर्ण - किरण लिख लाऊँ ? तुम्हीं बताओ मीत कि मैं कैसे अमरित बरसाऊँ ?