13 MAY 2021 AT 2:19

ऐ मुस्कान मेरी, समझाओ इन आँखों को,
मुसलसल बहते समुंदर को संभलना होगा,
उस गुनहगार का ज़िक्र लब तक न आए,
इक दोस्त का हमराज़ तो बनना होगा

- drg