ऐ मुस्कान मेरी, समझाओ इन आँखों को,मुसलसल बहते समुंदर को संभलना होगा,उस गुनहगार का ज़िक्र लब तक न आए,इक दोस्त का हमराज़ तो बनना होगा - drg
ऐ मुस्कान मेरी, समझाओ इन आँखों को,मुसलसल बहते समुंदर को संभलना होगा,उस गुनहगार का ज़िक्र लब तक न आए,इक दोस्त का हमराज़ तो बनना होगा
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