Dr. Anil Agyat   (डॉ. अनिल "अज्ञात")
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M. A., M. Ed., NET, Ph. D.
Joined 22 April 2018


M. A., M. Ed., NET, Ph. D.
Joined 22 April 2018
24 JUL 2023 AT 18:35

खून-पसीने के ईंधन से, खुद का यान चलाऊंगा,
मैं खुद आग का दरिया हूँ, ना समझो जल जाऊंगा।
पूरी होगी जब तैयारी, देखेगा अम्बर सारा,
वादा है तुमसे सूरज, इक दिन मिलने आऊंगा।

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9 MAY 2023 AT 8:39

तूफ़ानों से लड़करके, दो पंक्षी जग में रहते हैं।
छोटे से घर में रहकर, सबको सिंचित करते हैं।
दो प्यारे छोटे पंक्षी, अब उनके घर में शामिल हैं।
उनके खातिर वे दोनों, हर वक्त परिश्रम करते हैं।
प्रेम इसी को कहते हैं, हाँ.... प्रेम इसी को कहते हैं।

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25 MAR 2023 AT 12:12

सीखने की भूख (Hunger of Learn)

मंजिल दिखती है ख्वाबों में, तो इसमें तू हैरान न हो।
ख्वाब दिखे तो दिखने दो, उस पर ज्यादा परेशान न हो॥
‘भूख’ सफ़र को दर्शाती है, राह दिखे अनजाने को,
अपनी ‘भूख’ मिटाते रहना, और जगाते भी रहना।
जब तक ख्वाब न पूरे हों, तू चलता रह ‘भूख’ मिटाने को॥
बन खुद के लिए तू सत्यशील, होंगे पूरे हर ख्वाब तेरे।
विराम न लेना तू तब तक, जब तक ऊँचा अंजाम न हो॥

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15 AUG 2022 AT 10:01

ऐ भारत माँ चरणों में तेरे, अपना शीश झुकाते हैं,
घर-घर झण्डा लहराकर, श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं।
जाने कितनी कुर्बानी से, आजाद हुआ भारत अपना,
आओ हम सब मिल करके, देशप्रेम फैलाते हैं।

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4 JUL 2022 AT 19:53

न कोई वेदना, न कोई दर्द है,
अब तो ज़ख्मो से रिश्ता पुराना हुआ।
वो चुभोते हैं जब-जब भी खंजर मुझे,
मुझको लगता है रिश्ता निभाना हुआ

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4 JUL 2022 AT 19:16

मेरे जख्मों पे मरहम का, असर होता नहीं अब तो।
घाव गहरे हैं ताजे हैं, दर्द होता नहीं अब तो।
मेरा ग़र कत्ल कर डाला, तो गलती है नहीं उनकी।
उन्हें पहचान न पाया, शिकायत खुद से है अब तो।

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5 JUN 2022 AT 7:28

तुम चाहो तो सारा जहाँ मांग लो,
मेरी हर जुस्तजू तुम यहाँ मांग लो।
अपनी हर एक अदा तुझपे कुर्बान है,
दिल से खेलो या तुम मेरी जाँ मांग लो।

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3 JUN 2022 AT 13:22

सोंचा लेखनी को कहीं छुपाकर रख दूँ,
पर दिल के ज़ख्मो ने उसे खोज लिया।

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3 JUN 2022 AT 11:59

है रिश्तों का हर बीज कमजोर इतना,
जमीं भी है बंजर उगेगा कहाँ पर।
नदियों में जल की जगह स्वार्थ बहता,
मोहब्बत का पानी मिलेगा कहाँ पर।
ऐ कुदरत मुझे बस तू इतना बता दे,
इंसाँ पतित क्यों है इतना यहाँ पर।

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3 JUN 2022 AT 11:45

आंधियां चल रही हैं जहर की,
अब तो कातिल हवा हैं शहर की।
जब समंदर ही खारा हो पूरा,
गलतियां फिर नहीं हैं लहर की।

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