तन्हाइयों से गुजर रहा हूँ, मिलता ही कौन है?
महफ़िलों में शोर तो है, पर मन मेरा ये मौन है।
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जीवन-पथ के भवसागर में,
तू खुद ही अपना नाविक है,
ये प्रकृति-तत्व ही देव यहाँ,
चेतनता भी स्वाभाविक है।
पाखंड में इतना उलझे तुम,
सुधर सको अब वक्त नहीं,
ज्ञान का पन्ना रिक्त है तो,
तुम मूढ़ हो कोई भक्त नहीं।-
खिलवाड़ करेंगे कब तक हम,
प्रकृति भी हमसे खेलेगी।
जब खेल प्रकृति का होगा तब,
पूरी मानवता झेलेगी।
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"सकारात्मक चिंतन के लिए
किया जाने वाला प्रशिक्षण" ही पूजा है,
जो स्वयं से, स्वयं के लिए होता है.....-
गम को दिलों में, छुपा कर रखा था।
आंखों ने उसका खुलासा किया है।
सांसों का चलना, था जिनकी खातिर,
उसी नें तो मेरा तमाशा किया है।
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जीवन में संघर्ष बड़ा है,
कदम-कदम पर शूल खड़ा है।
खुशियां केवल चुल्लू भर है।
गम का सागर बहुत बड़ा है।
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कुछ यादें ऐसी होती हैं,
सांसो को बहका जाती हैं।
दिल के बिखरे ख्वाबों को,
फूलों सा महका जाती हैं।
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कुछ पाकर कुछ खो करके,
प्रतिदिन हाथ मला करता है।
इस जीवनपथ की अग्नि में,
इंसा, रोज जला करता है।
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हर धड़कन हर जान है अपनी,
मेरा तिरंगा शान है अपनी।
बलिदानों की अमर कहानी,
इसने आंखों देखा है,
लहू के पावन कतरों से
धरती मां को सींचा है,
देश का ये अभिमान है अपनी,
मेरा तिरंगा शान है अपनी।-
सागर में धारा जब तक है,
साथ हमारा तब तक है।
बूँद-बूँद जब तक जिंदा,
ये प्यार हमारा तब तक है।
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