कर्म और भाग्य में बस दो कदम की दूरी है परन्तु ये फासला उस वक़्त और अधिक बढ़ जाता है जब आप सच्चे, ईमानदार व सरल होते हैं।
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खुशियाँ मैं मनाऊँ कैसे, मेरी खुशियों
पर ग़मों का पहरा है।।
क-ख-ग-घ, अ-आ-इ-ई सीख चुका आगे अभी ककहरा है।।
जीवन संघर्षों का नाम है, फूलों की शय्या न समझ ले यार,,
ग़मों से न घबरा, संघर्ष करते ही जा आगे अभी तो लड़ना है।।
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भगवान को भी एक वो चाहिए जो यह प्रश्न कर सके कि ईश्वर कौन है?
वही हम हैं, जो प्रश्न करते रहते हैं।
वरना सिर्फ भगवान होके भला वो क्या करते? ना पूजने वाला ना पूछने वाला।
अत: कहीं न कहीं यह सत्य है कि भगवान है।-
विशेष दोहे -
सारी अक्ल लगा चुके.... काल करे अट्टास,,
बिसात का बाजा बजा, हुआ दंभ का नाश।।
मंगल पर मंगल करे, यहाँ अमंगल खास,,
कोराना से दम फुले, ले आ वापस साँस।।
साँस उसी ने छीन ली, जिसने दी है साँस,,
एलियन को खोज रहे, रोक सके ना नाश।।
साँसों का रिश्ता जरा, कर ले तू पड़ताल,,
कौन है भगवान कहाँ, ले सुध तू तत्काल।।
कहाँ छिपा वो कौन है, हो उसकी ही जाँच,,
घाट उतारे काल को.... रोके जो हर आँच।।
तू आत्मा का ज्ञान ले, परमात्मा को जान,,
जो जन्म-मृत्यु से परे, रहस्य वो पहचान।।
दिनेश एल० "जैहिंद"
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देश की समूची जनता से अपील---
मुँह पर जाबा लगा लो और पेट पर पत्थर बाँध लो।
....और देश के सारे गोदामों में माचिस मार दो।
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बदलाव के चक्कर में जो अच्छे हैं उससे हम चूक जाएंगे ।
अदल-बदल करके लुटेरों को फिर से गद्दी पर आजमाएंगे ।।
गलत-सही की समझ जब तक हमें नहीं हो पाएगी दोस्तो,,
इसी तरह से साल ओ साल हम धक्के पर धक्के खाएंगे ।।-
किसी का लिखा पढकर, किसी का पढ़ा सुनकर मैंने अब तक किया वाह...वाह !
सब की इच्छा, उनका कीर्तत्व फैले नहीं सोचा उसने मेरी होगी कुछ चाह...चाह !!
कुछ हैं अपनी कीर्ति के नशे में मदमस्त
मेरे अन्दर तो अब मायूसी छाई रहती है,,
है कोई जग में ऐसा मेरी खातिर कर दे
मेरी मुश्किल राहों को आसां राह...राह !!
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जैहिंद कुछ बात कहे, करो जरा-सा गौर
स्त्री कोई भोजन नहीं, मुँह में डालो कौर
नारी से नर है जना, नरहिं हुआ चंडाल
आत्मा पुरुषों की मरी, शेष रहा कंकाल
अस्मिता का सवाल है, बढ़ा हुआ है मर्ज
नारी जब बेबस हुई, .....कौन सुनेगा दर्द
बेटीका न मान रहा, पल-पल चिंता खाय
अगरसुधार नहीं हुआ, दोषी नर कहलाय
हवस एक कारण यहाँ, कैसे समझे दर्द
चक्षुओं में शील नहीं, मर्द हुआ खुदगर्ज़
दिनेश एल० "जैहिंद"
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आज का इंसान इस भुलावे में ही रह गया कि जो दिख रहा है वही सत्य है !
पर ये सत्य नहीं है सत्य कुछ और है जो दिख नहीं रहा है !
और इंसान अब उस सत्य से परिचित होकर भी अनजान बना रहना चाहता है !
कारण खास है कि जीवन और मृत्यु से वह आज भी अनभिज्ञ है !
जिस दिन जीवन और मृत्यु से उसने पर्दा उठा दिया उस दिन वह या तो ईश्वरीय हो जाएगा या खुद ईश्वर हो जाएगा !
#दिनेश एल० "जैहिंद"-
आप जितना अक्लमंद हो, उतनी ही उन्नतशील जिंदगी बसर कर रहे हो, ऐसा सोचकर आप बहुत बड़ी गलतफहमी में हो ! आप अपने को श्रेष्ठ योनि का मान कर एक सादा व सरल जिंदगी जीने से वंचित हुए जा रहे हो !
#दिनेश एल० "जैहिंद"-