Dharmendra Kumar Gautam   ('धरम')
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तराशूं ऐसा कि जौहरी हो जाऊँ
लिखूँ ऐसा कि इन्दौरी हो जाऊँ...
Joined 24 June 2017


तराशूं ऐसा कि जौहरी हो जाऊँ
लिखूँ ऐसा कि इन्दौरी हो जाऊँ...
Joined 24 June 2017
24 JUN 2017 AT 11:42

चिथड़े होगा शरीर, खून से बदन रंगा
उस दिन शरीर ढकने के, काम आएगा तिरंगा

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24 MAR 2020 AT 15:00

धूप सुनहरी शाम मुबारक
हमको ख़ुशी का ज़ाम मुबारक
सपनों की आज़माइश मुबारक
तुमको दिन-ए-पैदाइश मुबारक

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24 OCT 2019 AT 12:07

तू मुख़र्जीनगर के किसी ऑटो जैसी
मैं किसी मुसाफ़िर सा छूट जाता हूँ

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21 OCT 2019 AT 12:02

तू किसी हवा सी गुज़रती है,
मैं किसी रेत सा उड़ता जाता हूँ
तू किसी चौराहे की रेडलाइट सी,
तुझे देखूँ तो ठहर जाता हूँ

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19 OCT 2019 AT 14:04

तुम गईं
जैसे सूरज के आने से पहले चली जाए रात
मौत से पहले चली जाए साँस
कल के आते ही चला जाए आज
तुम गईं
जैसे सूरज के आने से चला जाए चाँद
धूप के आने से चली जाए छाँव
हवा के आने से चली जाए रेत
बाढ़ के आने से चला जाए सुकून
तुम गईं
जैसे चला जाता है कोई चले जाने के लिए

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27 SEP 2019 AT 7:37

साथ में जब तुम मेरे होते हो जान-ए- जाँ
कोई और तुम्हें देखे मुझे अच्छा नहीं लगता

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13 SEP 2019 AT 17:43

मुझको आदत है स्क्रीनशॉट लेकर चीज़ों को सहेजकर रखने की...
काश !
असल ज़िंदगी में भी स्क्रीनशॉट जैसी कोई तरकीब होती...
सहेजकर तुम्हें, रख लेता अपने पास
हमेशा - हमेशा के लिए...
काश !
होती कोई तरकीब ऐसी ...

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6 JUL 2019 AT 23:05

कचहरी-ए-इश्क़ उसकी थी,हम मुल्ज़िम मोहब्बत के
फ़ैसला जो भी वो करता, हमें मंज़ूर होना था

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17 APR 2018 AT 23:14

तुम चाँदनी चौक सी बेमिसाल
मैं बल्लीमारान सा तंगहाल
तुम नई सड़क सी नई नई
मैं न्यू देल्ही का ओल्ड माल

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16 APR 2018 AT 23:56

तुम कुतुबमीनार सी ऊँची हो
मैं अग्रसेन बाउली सा गहरा हूँ
तुम भवन राष्ट्रपति जैसी हो
मैं लालकिले का पहरा हूँ

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