चिथड़े होगा शरीर, खून से बदन रंगा
उस दिन शरीर ढकने के, काम आएगा तिरंगा-
लिखूँ ऐसा कि इन्दौरी हो जाऊँ...
धूप सुनहरी शाम मुबारक
हमको ख़ुशी का ज़ाम मुबारक
सपनों की आज़माइश मुबारक
तुमको दिन-ए-पैदाइश मुबारक-
तू मुख़र्जीनगर के किसी ऑटो जैसी
मैं किसी मुसाफ़िर सा छूट जाता हूँ-
तू किसी हवा सी गुज़रती है,
मैं किसी रेत सा उड़ता जाता हूँ
तू किसी चौराहे की रेडलाइट सी,
तुझे देखूँ तो ठहर जाता हूँ-
तुम गईं
जैसे सूरज के आने से पहले चली जाए रात
मौत से पहले चली जाए साँस
कल के आते ही चला जाए आज
तुम गईं
जैसे सूरज के आने से चला जाए चाँद
धूप के आने से चली जाए छाँव
हवा के आने से चली जाए रेत
बाढ़ के आने से चला जाए सुकून
तुम गईं
जैसे चला जाता है कोई चले जाने के लिए-
साथ में जब तुम मेरे होते हो जान-ए- जाँ
कोई और तुम्हें देखे मुझे अच्छा नहीं लगता-
मुझको आदत है स्क्रीनशॉट लेकर चीज़ों को सहेजकर रखने की...
काश !
असल ज़िंदगी में भी स्क्रीनशॉट जैसी कोई तरकीब होती...
सहेजकर तुम्हें, रख लेता अपने पास
हमेशा - हमेशा के लिए...
काश !
होती कोई तरकीब ऐसी ...-
कचहरी-ए-इश्क़ उसकी थी,हम मुल्ज़िम मोहब्बत के
फ़ैसला जो भी वो करता, हमें मंज़ूर होना था-
तुम चाँदनी चौक सी बेमिसाल
मैं बल्लीमारान सा तंगहाल
तुम नई सड़क सी नई नई
मैं न्यू देल्ही का ओल्ड माल
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तुम कुतुबमीनार सी ऊँची हो
मैं अग्रसेन बाउली सा गहरा हूँ
तुम भवन राष्ट्रपति जैसी हो
मैं लालकिले का पहरा हूँ-