आसमा में बनते समंदर के नजारे जैसे हो तुम,
पल भर को तुम्हारा ख्याल ही काफी है मेरे उझड़े मन को,
मित्रता के रंग में तरंगित और हास्य स्फुटीक बनाने के लिए,
अंगारों सी तपिश हो दिल में उसका इलाज है सिर्फ तुम्हारे बाते,
तुम वह पहली बारिश की शीतलता जैसे हो जो धूप में सुलगते
मेरे भटके मन को शीतलता की तरफ ले जाते हो,
तुम वही महादेव ने मेरे लिए भेजे प्यारे तोहफे जैसे हो जो,
हर मुश्किल में मेरे साथ होता है, होठों पर प्यारी मुस्कान से बैठ जाती है तुम और तुम्हारी हसमुखी बाते,
हर तरफ से जब में मायूसी की गिरफ्त में आ जाती हु,
मेरे सारे जख्मों के बीच तुम हो एक मरहम जो मिला है मुझे
ऐसे जैसे एक पल में सारे दर्द मेरी मुस्कान में बदल जाते है।
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