Deepti Tiwari   (दीप्ति तिवारी)
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Joined 1 February 2018


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12 JUL 2022 AT 23:06


उलझी हुई सी है ज़िन्दगी
इसको सुलझाऊँ क्या!?
अधूरी सी हैं ख़्वाहिशें
तुमको बताऊँ क्या!?
कितनी मुश्किलें हैं राहों में
कुछ वक़्त ठहर जाऊँ क्या!?
ख़्वाब कभी सच नहीं होते
रुकूँ या बढ़ती जाऊँ क्या!?
इतने काँटे हैं राहों में
इन्हें देख रुक जाऊँ क्या!?
कितने ठोकर खाए
रास्ता बदलती जाऊँ क्या!?
बेहिसाब अनकहे लफ़्ज़ हैं
बैठो ज़रा, तुम्हें सुनाऊँ क्या !?
अधूरी सी हैं ख़्वाहिशें
तुमको बताऊँ क्या!?
उलझी-उलझी सी है जीवन की पहेली
इसको सुलझाऊँ क्या!?

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25 MAY 2022 AT 20:12

ज़िन्दगी का ये सफ़र जितना दूर तक का था
उतना ही थका देने वाला,
हर रोज घर से निकलती मैं
इस उम्मीद में कि अपने उम्मीदों को पंख दे सकू
उन सबसे हटकर जी सकू जो मैंने जिया ही नहीं
हर रोज बहुत बातें होती है खुद से करने को
लेकिन मौन ने इस कदर घर बना लिया है
की मैं ज़िक्र भी नही करती खुद से ख़ुद का,
इस भीड़ में अलग दिखने की चाह में
दब कर रह जाती हूँ;जैसे अपने ही मन मे घुटते रहना,
कितना अच्छा होता ना अगर
मैं अपने विचारों को असलियत में बदल पाती
कितना अच्छा होता ना अगर
मैं भीड़ से निकल कर निखर पाती
कितना अच्छा होता अगर
मेरे हिस्से का जवाब, मेरा अच्छा वक्त देता
लेकिन इस काश और शायद में सिमट कर रह गयी हूँ
ठीक उस टूटे पंख वाले पंक्षी की तरह
जिसे उड़ना भी है और पंखों में जान भी नही बची है ।
इतनी हार मिली की अब हारने से ही हार गई हूं
फिर भी अपनी जीत के लिए
मैं उम्मीदों का दामन नही छोड़ सकती
क्योंकि एक न एक दिन मेरा तारा अलग नज़र आएगा
इस आसमान में और फिर वो किसी का लक्ष्य
और ऊर्जा का स्त्रोत होगा ।।

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25 MAY 2022 AT 19:49

जीवन मे खुशियाँ पानी के बुलबुले सी बनकर आई
खूबसूरत तो थी मगर ठहर ना पाई कुछ वक़्त ।।

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25 MAY 2022 AT 19:32

Relatives*

After giving unnecessary gyaan for hours

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30 DEC 2021 AT 21:47

किरदार वही है कहानी बदल गई है;साल बदलने के साथ यारी भी बदल गयी हैं,एक जमाना था जब यारों संग मुस्कुराया करते थे मगर क्या कहे जनाब यारों से पूछा तो उनकी ज़बान ही बदल गयी है ।।

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1 SEP 2021 AT 12:51

जीवन का मीठा रस चखने के लिए
कभी कभी वक्त का कड़वा घूँट भी पीना पड़ता है ।।

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21 JUL 2021 AT 10:39

मुझे रंग बदलना नहीं आता
हर ढंग में ढलना नहीं आता
मेरी बातें सबको बुरी लगती हैं मगर;
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।

चेहरे पर चेहरा लगाना नहीं आता
बुरे को अच्छा बताना नहीं आता
बातें चुभती है सबको मेरी मगर;
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।

टेढ़ी-मेढ़ी बातें करना नहीं आता
बातों में उलझना नहीं आता
बातें सीधी रहती है मेरी मगर
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।

गैरों की बातों पर चलना नहीं आता
गैरों के लिए अपनो को परखना नहीं आता
बातें तो बहुत सी होती हैं मगर
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।

मतलब के लिए किसी को अपनाना नहीं आता
मन मे छल रख कर फसाना नहीं आता
नाराज़गी मंजूर है लोगों की मगर
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।

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9 JUL 2021 AT 21:42

घनघोर बरखा जैसे तूफाँ गुज़रने के बाद ;
रह जाते ,सिर्फ आंसू मौत आने के बाद !

यह मौत का रिश्ता सबसे है अनोखा,
भूल जाते सब मौत आने के बाद ।

तबतक खामोशी कोई समझ नही सका,
दौर आता भी तो ; मौत आने के बाद ।।

हार जीत तो सिर्फ वक़्त का है खेल ;
कोई नही पूछता मौत आने के बाद ।

रिश्तों में मिठास रखो जरा ,
कोई लौटता नहीं मौत आने के बाद ।।

अनसुनी आहटे रह जाती है पास,
कोई कहानी नही सुनाता मौत आने के बाद ।

मिलता है तब अपने कर्मों का फल,
कोई आरक्षण नही होता मौत आने के बाद ।।

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4 JUL 2021 AT 7:53

कागज़ को कलम की बस इतनी सी बात खल गई,
कोरा कागज़ था मैं,मुझे ख़यालों के स्याही से रंग गई ।।

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3 JUL 2021 AT 22:10

काश !! ये लम्हें अपने होते !!
न किसी पल बिखरते और;
न कभी इन लम्हों के लिए रोते,
बिखरी यादों के सहारे रहे
काश !! हम वही हसीं पल हर बार जिए जाते ।

काश !! सभी हमारी नज़्मों को समझते
कभी सब साथ हँसते तो
कभी सब साथ रोते;
अपनों के अपनेपन के साथ
काश !! एक हसीं जीवन जिए जाते ।

काश !! भेदभाव न करते
किसी को न परखते,
हर किसी को अपनाते;
जीवन की गाड़ी में हँसते- खेलते
काश !! अपना हसीं ख़्वाब जिए जाते ।।

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