कुछ लम्हे ख़ामोशी से वक़्त से उधार लेना चाहती हूँ ,
जहाँ दिल सुकून से धड़क सके, वो ख़्वाब देखना चाहती हूँ ;
मैं ऐसी मंज़िल की तलाश में हूँ,
जहाँ बेफ़िक्र हँस सकूँ, और खुद से फिर से प्यार करना चाहती हूँ ।
ज़िंदगी के हर दर्द से थोड़ी राहत चाहिए,
इन थक चुके जज़्बातों को कुछ राहत की राहत चाहिए।
हर ठहराव, हर अफ़सोस को अलविदा कहकर,
अब बस खुद के लिए, एक नई राह चुनना चाहती हूँ।-
उलझी हुई सी है ज़िन्दगी
इसको सुलझाऊँ क्या!?
अधूरी सी हैं ख़्वाहिशें
तुमको बताऊँ क्या!?
कितनी मुश्किलें हैं राहों में
कुछ वक़्त ठहर जाऊँ क्या!?
ख़्वाब कभी सच नहीं होते
रुकूँ या बढ़ती जाऊँ क्या!?
इतने काँटे हैं राहों में
इन्हें देख रुक जाऊँ क्या!?
कितने ठोकर खाए
रास्ता बदलती जाऊँ क्या!?
बेहिसाब अनकहे लफ़्ज़ हैं
बैठो ज़रा, तुम्हें सुनाऊँ क्या !?
अधूरी सी हैं ख़्वाहिशें
तुमको बताऊँ क्या!?
उलझी-उलझी सी है जीवन की पहेली
इसको सुलझाऊँ क्या!?-
ज़िन्दगी का ये सफ़र जितना दूर तक का था
उतना ही थका देने वाला,
हर रोज घर से निकलती मैं
इस उम्मीद में कि अपने उम्मीदों को पंख दे सकू
उन सबसे हटकर जी सकू जो मैंने जिया ही नहीं
हर रोज बहुत बातें होती है खुद से करने को
लेकिन मौन ने इस कदर घर बना लिया है
की मैं ज़िक्र भी नही करती खुद से ख़ुद का,
इस भीड़ में अलग दिखने की चाह में
दब कर रह जाती हूँ;जैसे अपने ही मन मे घुटते रहना,
कितना अच्छा होता ना अगर
मैं अपने विचारों को असलियत में बदल पाती
कितना अच्छा होता ना अगर
मैं भीड़ से निकल कर निखर पाती
कितना अच्छा होता अगर
मेरे हिस्से का जवाब, मेरा अच्छा वक्त देता
लेकिन इस काश और शायद में सिमट कर रह गयी हूँ
ठीक उस टूटे पंख वाले पंक्षी की तरह
जिसे उड़ना भी है और पंखों में जान भी नही बची है ।
इतनी हार मिली की अब हारने से ही हार गई हूं
फिर भी अपनी जीत के लिए
मैं उम्मीदों का दामन नही छोड़ सकती
क्योंकि एक न एक दिन मेरा तारा अलग नज़र आएगा
इस आसमान में और फिर वो किसी का लक्ष्य
और ऊर्जा का स्त्रोत होगा ।।-
जीवन मे खुशियाँ पानी के बुलबुले सी बनकर आई
खूबसूरत तो थी मगर ठहर ना पाई कुछ वक़्त ।।-
किरदार वही है कहानी बदल गई है;साल बदलने के साथ यारी भी बदल गयी हैं,एक जमाना था जब यारों संग मुस्कुराया करते थे मगर क्या कहे जनाब यारों से पूछा तो उनकी ज़बान ही बदल गयी है ।।
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जीवन का मीठा रस चखने के लिए
कभी कभी वक्त का कड़वा घूँट भी पीना पड़ता है ।।-
मुझे रंग बदलना नहीं आता
हर ढंग में ढलना नहीं आता
मेरी बातें सबको बुरी लगती हैं मगर;
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।
चेहरे पर चेहरा लगाना नहीं आता
बुरे को अच्छा बताना नहीं आता
बातें चुभती है सबको मेरी मगर;
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।
टेढ़ी-मेढ़ी बातें करना नहीं आता
बातों में उलझना नहीं आता
बातें सीधी रहती है मेरी मगर
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।
गैरों की बातों पर चलना नहीं आता
गैरों के लिए अपनो को परखना नहीं आता
बातें तो बहुत सी होती हैं मगर
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।
मतलब के लिए किसी को अपनाना नहीं आता
मन मे छल रख कर फसाना नहीं आता
नाराज़गी मंजूर है लोगों की मगर
मुझे दिखावे का हुनर नहीं आता ।।-
घनघोर बरखा जैसे तूफाँ गुज़रने के बाद ;
रह जाते ,सिर्फ आंसू मौत आने के बाद !
यह मौत का रिश्ता सबसे है अनोखा,
भूल जाते सब मौत आने के बाद ।
तबतक खामोशी कोई समझ नही सका,
दौर आता भी तो ; मौत आने के बाद ।।
हार जीत तो सिर्फ वक़्त का है खेल ;
कोई नही पूछता मौत आने के बाद ।
रिश्तों में मिठास रखो जरा ,
कोई लौटता नहीं मौत आने के बाद ।।
अनसुनी आहटे रह जाती है पास,
कोई कहानी नही सुनाता मौत आने के बाद ।
मिलता है तब अपने कर्मों का फल,
कोई आरक्षण नही होता मौत आने के बाद ।।
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कागज़ को कलम की बस इतनी सी बात खल गई,
कोरा कागज़ था मैं,मुझे ख़यालों के स्याही से रंग गई ।।
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