ऐ ज़िंदगी, तू मुझे जाने किस मोड़
मोड़े जा रही है?
मैं भी तेरे संग
कुछ भी सोचे समझे बिना
जहाँ तू ले चले, वहाँ चले जा रही हूँ
ऐ ज़िंदगी, तू मुझे जाने कैसे रंग
हर कदम दिखा रही है?
मैं भी हर रंग में
बिना कोई सवाल किए
जैसा तू रंग दे, वैसे ख़ुद को रंगे जा रही हूँ
कभी संघर्षों की कतार है
तो कभी खुशियों की बहार है
कभी गुम है मंज़िलें
तो कभी एक पल में ही ज़िंदगी का सार है...
ऐ ज़िंदगी, तू मुझे जाने क्या
सिखाना चाह रही है?
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