मैं अब तुम्हारे लिए गीत नहीं लिखती ।
कागज़ पर या मेहंदी में ' मनमीत ' नहीं लिखती ।
आगे या पीछे नहीं, तुम साथ चलते हो मेरे अब ।
पड़ोसन मगर अब कोई अफवाह नहीं लिखती ।
मुझे तो आज भी बहुत है मिलना तुमसे ।
दुआ मांग मैं पीपल तले तुम्हारा नाम नहीं लिखती ।
क्या यह कलम भूल गई है मुहब्बत हमारी ?
हिसाब लिखती है, अरमान नहीं लिखती ।
~ अनंत स्याही • The Perpetual Inkpot-
✍🏻 The Perpetual Inkpot | अनंत स्याही
बकवास
अंतहीन है
इसलिए
शुरू न करें।
~The Perpetual Inkpot • अनंत स्याही-
मैं चौखट पर उदास खड़ा न रहूंगा ।
मैं कलयुग का, सुदामा बन, चुप न रहूंगा ।
तू होगा द्वारकाधीश, लक्ष्मीपति ।
मैं तेरे अंग लगूंगा, तुझसे दूर न रहूंगा ।
माना कि अधम बड़ा हूं मैं ।
भोग पाऊंगा मैं भी छप्पन, मीरा सा विष पी न रहूंगा ।
मैं दरिद्र नहीं हूँ, धनवान नहीं बस ।
तेरे रहते खाली झोली न रहूंगा ।
~
The Perpetual Inkpot • अनंत स्याही
-
मां छिपा लेती है दर्द अपने
सिंदूर के नीचे,
काजल के पीछे ।
पिता के पास नहीं ये विकल्प ।
पिता अपनी पीड़ा अखबार में लपेटते है ।
~ The Perpetual Inkpot• अनंत स्याही-
घर नौकरी से चलता है ।
इस नाकद्र दुनिया में
शायर तो भूखा मरता है ।
The Perpetual Inkpot|
अनंत स्याही-
They are not
a ' family '
if you can't see
each other's
phone contents.
They could be
friends,
acquaintances or
anything but Family.
Don't let people
emotionally
blackmail you
in the name
of "family".-
having not to
worry about
who said what
to
whom.
~ The Perpetual Inkpot | अनंत स्याही-
दिल तुम्हारा
पत्थर है,
वर्षों से शापित अहिल्या सा बंजर ।
तुम कहो तो, अपने प्रेम से,
इसको फिर ' गौतमी ' कर दूं ।
~ The Perpetual Inkpot|अनंत स्याही-
दिल तुम्हारा
पत्थर है,
वर्षों से शापित अहिल्या सा बंजर ।
तुम कहो तो, अपने प्रेम से,
इसको फिर ' गौतमी ' कर दूं ।
~ The Perpetual Inkpot|अनंत स्याही-
अव्यक्त विचार
एक समय के बाद
' सैलाब 'हो जाते हैं ।
(पूरा पढें अनुशीर्षक में)
~ The Perpetual Inkpot | अनंत स्याही-