दिवस मनाते हैं तेरा हम ऊंची ऊंची बातें करना,
पृथ्वी माता इससे ज्यादा तुम हमसे उम्मीद न करना।
जन्मभूमि जननी होती है ऐसा हमने पढ़ रक्खा है,
पढ़ना ही काफी होता है ऐसा मन में गढ़ रक्खा है।
हमने तेरे अंग भंग कर हर हिस्से के दाम दिए हैं,
हम कपूत कहलायेंगे मां हमने ऐसे काम किये हैं।
हमने काटे हैं वृक्ष सभी मां जो हैं तुम्हारे केश,
शायद न पहचान सकोगी तुम ही अपना वेश।
स्वार्थ में भूंखे होकर हमने ऐसी लहर चला दी,
तेज रसायन मिला मिलाकर धरती ज़हर बना दी।
कल कल करती नदियां माता हो जाएंगी नाले,
हमने अपने पाप सभी इनकी झोली में डाले।
अपनी सहुलतों को मां इस कदर बढ़ाया हमने,
सनन सनन चलती वायु को ज़हर बनाया हमने।
इन कृत्यों से दर्द भी तुझको खूब हुआ होगा मां,
तेरी आँखों का पानी भी सूख चुका होगा मां।
- Deepak