तनी तनी सी रहती है
मन गुनी सी रहती है
हर बात पे मिर्च लगती है
जली भुनी सी रहती है-
तुम ऐसा कारो मेरी हकीकत निगल जाओ
इन सभी चक्करों से कहीं दूर निकल जाओ
इससे पहले की मैं तुम्हे माना लूं
इससे पहले की तुम मेरी बातों से पिघल जाओ
मेरा संग, मेरा साथ ठीक नही
मेरा लहजा, मेरी बात ठीक नही
मेरे दिन ,मेरी रात ठीक नही
समझ लो ये हालात ठीक नही ......
मैं फिसल गया पर तुम तो संभल जाओ
यहां दर्द और गम है हर तरफ
यहां जखम जखम है हर तरफ
यहां टूटे दिलों की थाह नही
किसी को कीसी की परवाह नही
नही ऐसा कुछ के तुम बहल जाओ
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तारीफ तेरी मैं ना करना चाहूं ऐसी कोई बात नही
तारीफ हो तेरी जिनमे ऐसे लफ्जों की मालूमात नही-
मानो या ना मानो मनमर्जियों से अपनी ये जिंदगी चलती नही है
कैसे दूं तुम्हे दिलासा कोई मुझसे सुत्तन अपनी संभलती नही है-
कोई खैर का कलमा पढ़ शा ई'र
हर रोज का रोना ठीक नही
आंखो की जलन की दवा कई
अश्कों से भिगोना ठीक नही
नींद न आने का सबब कुछ और है
तुम कहते हो बिछौना ठीक नही
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