میی جتنا تجھ سے کروں ، تو بھی مجھ سےسرف اتنا ہی کرے
اتنا بس بتا مجھے منتظر، ہم عشق کرے یا کاروبار کرے ؟-
सुंदरता पर तुम्हारी
कुछ लिख देना
सरल नहीं।
जो प्रेम है तुमसे
उस की अभिव्यक्ति
संभव नहीं।
तुम्हें जो कर सकें शोभित,
ऐसे, मुझ पर
अलंकार नहीं ।
पर तुम्हें पाकर
मैं अब ,
शून्य नहीं ।-
कुछ धुँधली सी हैं वो वक़्त की तस्वीरें हाकिम
जिनमें हर शख़्स साफ़ दिल हुआ करता था ।
کچھ دھندھلی سی ہیےں وہ وقت کی تصویریں حاکم
جن مئ ہر شخص ساف دل ہوآ کرتا تھا-
दिमाग़ की एक ना सुनी, सिर्फ़ दिल के काम किए हैं ।
मुन्तज़िर ऐसे फ़ैसले, हमने तमाम किए हैं ॥-
फिर मुड़ कर ना देखा उस शहर की जानिब मुन्तज़िर
जहाँ कभी रहता था हर दिल अज़ीज़ यार मेरा-
एक सुबह जब मैं
जाग जाऊँगा तुमसे पहले
और उस रोज़ मुझे
तुम्हारी फ़िक्र नहीं होगी
तुम्हारा हाल जानने को
फ़ोन भी नहीं उठाऊँगा
उस रोज़ मैं सिर्फ़
करवट बदलूँगा ।-
फ़िक्र में तुम्हारी सारी रात जागा मुन्तज़िर,
मोहब्बत के सिवा और वजह क्या होगी ?-
मैं किस से अपनी तन्हाई का शिकवा करूँ
मिले मुझे मुन्तज़िर सा कोई तो गुफ़्तगू करूँ-
कल ही की बात लगती है तुझसे पहली मुलाक़ात मुन्तज़िर
मगर तुझ से आख़री दफे मिले मानो अरसा बीत गया !-
جب ہو ہی نا سکے اسکا دیدار
اس شہر میی منتظر پھر کیا جمع کیا اتوار-