डा ललित फरक्या "पार्थ"   (डा ललित फरक्या "पार्थ")
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Joined 13 September 2018


Joined 13 September 2018

जला देना चाहिए
अपने
क्रोध
तम
अहम्
ईर्ष्या
स्वार्थ
को
होली की
इस ज्वाला
में
बुराईयों के
दहन के
रूप में।

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आप और आपके परिवार को रंगोत्सव की रंग-बिरंगी शुभ कामनाएँ।

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तुम्हारे द्वारा दिया
दर्द भुला नहीं सकते मगर
तुमसे भी पीछा छुड़ा नहीं सकते
क्योंकि हमने तुम्हें ही
अपना दिल दिया था
तुम्हीं को अपना जीवन
समर्पण किया था लेकिन
चन्द मनभेद को मतभेद
का रूप देकर तुमने मेरा
हर समर्पण ठुकरा दिया
काश! इक बार सोच तो लेते।

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जय श्री कृष्णा

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तेरी आँखों की क़ैद में
तड़फ रहा हूँ मैं हरदम
ना खा पा रहा हूँ और
ना निगल पा रहा हूँ
हरदम आहे ही आहे
तुम्हारी नज़रों का खौफ
सता रहा है पल-प्रतिपल
लेकिन तुम्हारे मन में
नहीं दिखता कोई रहम
कौनसी ऐसी खता हुई
जिसकी सज़ा दे रही हो
क्या यह तुम्हारा भरम है
या फिर मेरा वहम् .....।
(६५/३६५/२०२२)

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के लिए
दो क़दम बढ़ाओ ईश्वर की ओर

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उम्मीद के आसमान तले
आशाओं का जाल बुने
बुन जाल आशाओं का
सपनों को साकार करें
कर सपनों को साकार
ख़ुशियों का आकार धरे
धर ख़ुशियों का आकार
इस जग का उपकार करें
कर इस जग का उपकार
अपने जीवन का उद्धार करें
कर अपने जीवन का उद्धार
ईश्वर का अस्तित्व स्वीकार करें।
(६६/३६५/२०२२)

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ख्याति दो ही रूप में पाई जा सकती है चाहे कुख्यात होकर या विख्यात हो फिर
भले ही सोशल मीडिया पर या प्रिन्ट मीडिया पर

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न तू ग़ैर है न मैं ग़ैर
फिर किस बात का
तूने पाल रखा है बैर।

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ओ गौरी,
आंखों में सवाल लिए
एकटक देख रही हो किसे
क्या ख़ता हुई है किसी से
ज़रूर खाई है तुमने ठोंकर
वरना क्यूँ खड़ी होती यूँ चाहकर
उठ रहे हैं मेरे ज़ेहन में
अनगिनत, अनुत्तरित सवाल
ज़रूर किसी नासमझ ने
खड़ा किया है यह बवाल
अब छोड़ दो हर सन्ताप
ईश्वर ही कर देगा न्याय
क्योंकि वही है प्रबल प्रताप।
(६४/३६५/२०२२)

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