डा ललित फरक्या "पार्थ"   (डा ललित फरक्या "पार्थ")
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Joined 13 September 2018


Joined 13 September 2018

ज़िन्दगी में हमने बहुत बढ़ाई इख़्तिलात
ज़रूरत पर कोई नहीं करता है मुलाक़ात

सब अपने अपने फन में माहिर है
वे नहीं करते किसी से कोई बात

स्वार्थ की दुनिया में अब नहीं बची हमदर्दी
इसलिए कोई नहीं चाहता होने को हयात।

ज़माने में जबसे मज़हब की मची है धूम
ख़त्म हो गई है इस चमन से इख़्तिलात

"पार्थ" हैवानियत के इस नापाक दौर में
मँहगी पड़ने लगी है क्षणभर की भी मुलाकात।

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स्वाभिमान की कमाई से खाई गई रोटी
माँग कर खाई गई रोटी से ज़्यादा मीठी होती है।

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ख़त में लिख दिया
है नाम तेरा,
तू ही है हमराह मेरा।

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सादगी में ही ज़िन्दगी का सार है,
सादगी में ही ज़िन्दगी का प्यार है।

सादगी से जीवन की महिमा है,
सादगी में ही जीवन की गरिमा है।

सादगी में ही खुशियों का उपहार है,
सादगी से ही प्रसन्न हर बहार है।

सादगी जीवन की अमूल्य संपत्ति है,
सादगी से ही कटती हर विपत्ति है।

"पार्थ" सादगी को गले लगाना है,
और हर समस्या के पार जाना है।

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कविता मेरे दिल की धड़कन है
न करो इनसे कोई ऐतराज़।

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कुछ समय बिता लो अपनों के साथ,
और कुछ नहीं यही यादें रहेगी साथ।

यह शरीर तो है पंचतत्व का पिंजरा
साँसों के रूकते ही नहीं जाता साथ।

इस देह की खूबसूरती पर मत कर अभिमान
यही छोड़ जाएगा नहीं ले जाएगा तू साथ।

ज़िन्दगी मिली है कर ले कुछ नेकी के नाम,
यही चलेंगे पीढ़ियों तक तेरे नाम के साथ।

मत करना अनैतिकता के कोई भी काम,
वरना अपने भी छोड़ देते हैं जीवन का साथ।

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सांझ ढले तुम लौट आना
सुबह किया वादा निभाना
संग अपने ख़ुशियाँ लाना
नहीं चलेगा कोई बहाना
परोसूँगी प्रेम का नज़राना
बहाने से यूं ना भरमाना
साथ बैठ गाएँगे तराना
लिखा है एक अफसाना
कुछ सुनना कुछ सुनाना
सांझ ढले तुम लौट आना
अब तो बढ़ाओ याराना।

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मयखाना रात भर का तमाशा है,
सुबह उठो फिर घुलती हताशा है।

यह जीवन मिला है जीने के लिए,
वो जी रहे हैं रात-दिन पीने के लिए।

वे मधुशाला में छलका कर जाम,
जग में हो रहे हैं रोज ही बदनाम।

नहीं है उन्हें मलाल जाम पीने का,
इसी में ढूँढ़ लिया मज़ा जो जीने का।

"पार्थ" अब नहीं है समय समझाने का,
वरना देर नहीं करते वे हाथ आजमाने का।

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मुझे तुम्हारी फ़िक्र है,
मेरे मन में इसका ज़िक्र है।

तुम्हारी फ़िक्र है मेरी साँसें
उसी से जुड़ी मेरी ख़्वाहिशें।

फ़िक्र है तभी दिल लगा है,
वरना कौन किसका सगा है।

फ़िक्र में तुम्हारी बीत रही ज़िन्दगी,
कब तक सहना होगी यह बन्दगी

तुम्हारी फ़िक्र मेरी है परीक्षा,
कभी बैठकर कर लो समीक्षा।

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संघर्ष माँगती है ज़िन्दगी,
यूंही नहीं कटती है ज़िन्दगी।
दु:खों का सागर है ज़िन्दगी,
सुखों की गागर है ज़िन्दगी।
ख़ुशियों की मोहताज है ज़िन्दगी,
कष्टों से लबरेज़ है ज़िन्दगी।
कई बंदिशों से गुजरती है ज़िन्दगी,
कई ख़्वाहिशों पर मिटती है ज़िन्दगी।
औरों के लिए कटती है ज़िन्दगी,
अपने लिए नहीं रहती है ज़िन्दगी।
कतरा-कतरा है ज़िन्दगी,
पैंतरों से भरी है ज़िन्दगी।

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