ओ गौरी,
आंखों में सवाल लिए
एकटक देख रही हो किसे
क्या ख़ता हुई है किसी से
ज़रूर खाई है तुमने ठोंकर
वरना क्यूँ खड़ी होती यूँ चाहकर
उठ रहे हैं मेरे ज़ेहन में
अनगिनत, अनुत्तरित सवाल
ज़रूर किसी नासमझ ने
खड़ा किया है यह बवाल
अब छोड़ दो हर सन्ताप
ईश्वर ही कर देगा न्याय
क्योंकि वही है प्रबल प्रताप।
(६४/३६५/२०२२)
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