Kamal Singh   (Kamal singh)
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Joined 23 June 2019


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5 JAN 2022 AT 17:59

कांच पर चलना है या, तपते सहराओं में
तुम्हारे साथ चलना हो तो हर राह जायज़ है

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4 JAN 2022 AT 15:20

किसी दिन आओगे लौटकर इस यकीं के साथ,
मैंने रिश्ता नहीं जोड़ा किसी अजनबी के साथ ॥

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3 JAN 2022 AT 10:10

जिस हाल में रहकर दिन बिताता हूं मैं
यकीन मानो, रोज़ फ़ांसी लगाता हूं मैं

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2 JUN 2021 AT 9:20

लेखक होना क्या है..
सज़ा है दर्द है
.दर्द है.. दर्द को लिखने का
दर्द को समझने का
दर्द को जीने का
और तमाम दर्दों के बावज़ूद
मुस्कुराने का, ख़ुशी बयां करने का
उलझने का दर्द है.. और सुलझने का भी..
कोई नहीं समझे तो भी दर्द
कोई ग़लत समझे तो भी दर्द
फक़त.. काग़ज़, कलम, और दर्द
और इनके दरमियाँ
इक बिखरा हुआ शख़्स
जो शायद रोज़ मारता है
ख़ुद को, ख़्वाबों को..
ज़िन्दा रहने के लिए.......
लिखने के लिए.....

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30 MAY 2021 AT 13:32

कई हसीन चेहरे हैं दिल एक है, किधर लगाएं
हस्र-ओ-हाल वही होना है चाहें जिधर लगाएं

शहर का रास्ता जो कटकर मेरे गाँव जाता है
क्यूँ ना एक पीपल का पेड़ हम उधर लगाएं

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27 MAY 2021 AT 13:41

मेरी पत्नि हो तो क्या हुआ
आज़ाद हो तुम...
ख़्वाब देखने के लिए
उड़ने के लिए
वो सब करने के लिए
जिसकी तमन्ना है तुम्हें
पर एक बात सोच के मौन हूं
तुम्हें आज़ादी देने वाला
होता मैं कौन हूं......?????

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25 MAY 2021 AT 18:50

अपने ज़ख्मों का ख्याल रख, उन्हें भरने दे
मेरी जाँ मुझे छोड़..... इसी हाल में मरने दे

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21 MAY 2021 AT 11:52

तू कुछ कहता क्यूँ नहीं,कि तू क्या चाहता है
मेरे साथ रहना है तुझको या जुदा चाहता है

लगता है तेरा दिल अब...... भर गया मुझसे
या मुझसे ज़्यादा..तुझे कोई .दूसरा चाहता है

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21 MAY 2021 AT 9:44

बादल हिज्र के हैं बरसते रहेंगे तो क्या होगा
ऐसी बरसात ऐसे मौसम में वैसे भी क्या होगा।।

ये पेड़, पत्ते.. फूल गुल ओ बाहर सब भीगते हैं
ज़रा देखे आपके भीगने पर ऐसा क्या होगा

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19 MAY 2021 AT 18:35

औरत काम, नाम, घर, दौलत देखती है
मर्द की आंखे बस एक औरत देखती है
फर्क़ नहीं दोनों के देखने में कुछ भी
इक ज़रूरत तो दूसरा हसरत देखती है

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