(शिखा शर्मा)
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Joined 4 September 2021


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24 JUL 2022 AT 23:28

"हमनें तो बस उनसे एक ही सवाल पूछा था।
क्या साथ दोगे तुम मेरा?
मगर उनकी उलझनों से भरी नज़रों ने तो कमाल कर दिया।
ज़ेहन में कभी न आने वाले सवालातों के जवाब पहले ही दे गए।"

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6 JUN 2022 AT 15:07

"कुछ कहना था तुमसे,
मगर तुम्हारे पास सुनने का वक्त ही कहां??
आज एक साथ रहकर भी तो,
हम पहले जितने नज़दीक कहां!"

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6 JUN 2022 AT 14:45

"कितनी दफ़ा वो कहता रहा!!!
अपनी दिल की कश्मकश उनको बतलाता रहा।
कभी तो सुन ही लेंगे वो!!!!
दिल के एहसासात समझ ही लेंगे वो।
यही सोच, हर रोज़, हर नफ़स
किसी तरह बस जीता रहा।"

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30 MAY 2022 AT 18:59

"थोड़ा तो सब्र रखते!!!
मेरा कुछ दिन इंतज़ार तो करते।
इतने क्यों ख़ुद-ग़र्ज़ हो चले थे तुम।
मेरी कही बातों पर ऐतिबार करके तो देखते।"

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30 MAY 2022 AT 11:23

"रात एक खिड़की है,
जिससे न जानें!!! कितने ही अधूरे सपने,
बाहर निकल सच होने को तरस रहे।
कुछ अपनी मेहनत को,
तो कुछ अपनी किस्मत को कोस रहें।"

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29 MAY 2022 AT 22:24

"कुछ ख़्वाहिशें
मयस्सर होकर भी अधूरी-सी हैं।
और कुछ ख़्वाहिशें
न पाकर भी पूरी-सी।"

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24 MAY 2022 AT 15:58

"जब एक याद बहुत याद आती है।
न जाने क्यों ??
थम-सा जाता है ये वक़्त और
वो इक याद गुज़रे कल में बहा ले जाती है।"

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18 MAY 2022 AT 15:59

"जब हर बार सिर्फ़,
एक ही रिश्ता निभाता रहेगा
और तुम इज्ज़त दोगे नहीं।
फिर ऐसे तो रिश्ता बचेगा नही।"

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17 MAY 2022 AT 21:22

"उनके तसव्वुर को लिखते हैं,
मिटाते हैं, इन सुर्ख आंखों में।
उनकी यादों को ज़ेहन में लाने से कतराते है।"

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6 MAY 2022 AT 23:06

"लिखने को बहुत कुछ है मगर....
ज़ेहन में आते ख़्यालातों के लिए
आज मेरे पास मुनासिब लफ़्ज़ नही।"

"चलो किसी तरह लफ़्ज़ भी ढूंढ लूं...
मगर कोई मेरे लिखे अलफ़ाज़ को पढ़ लें,
इतना भी तो अब किसी के पास वक्त नही।"

"वो ज़माना बीत गया....
जब काग़ज़ पर लिखी इबारत को
पढ़ने के कई शौकीन हुआ करते थे।"

"अब तो कोई नज़दीक बैठकर....
तुमसे घड़ी-दो-घड़ी चंद बातें बतियाले,
उसके लिए भी तो कोई पल नही।"

"लिखने को बहुत कुछ है मगर......"

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