रात के पास तो दिन से तारे बहोत है
जो एक न हो पास अंधेरे बहोत है
फासलो से फैली हुई है ये तिरगी
नूरानी यहा सबके चेहरे बहोत है
दिन में भी ठहरी रही रात घर मिरे
उसके मेरे लिए पहरे बहोत है
जरूरी नहीं हर बात की हो बात
मेरे लिए तो बस इशारे बहोत है
अंजान बनता है देखकर अब वो
जिसकी गली में हम ठहरे बहोत है
उतरिए दरिया में थोड़ा तो सही
मत कहिए के किनारे बहोत है
खुश है मेरा रकीब जिसे पाकर
हमे भी वो कहता था हमारे बहोत है
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A friend |... some nouns |... some adjectiv... read more
हुक्मनामा है सारे फूलों को एक रंग में रंगा जाए
जमीं को खबर ना करदे छींटे अखबारों से रोका जाए-
पहली किश्त को पूरा दाम समझ बैठा है
नया-नया है इश्क़ को काम समझ बैठा है
सुबह आती है उसके उजाले नहीं आते
किसी साये को वो जहान समझ बैठा है
कोई आएगा इसलिए गिरा रखी है दीवारें
ये शहर मुझको रास्ता-ए-आम समझ बैठा है
जय-जयकारे भी खूब खुशफहम है करते
वो पुतला जला खुदको राम समझ बैठा है
मैंने अपनी खुशी के लिए उसे क्या हंसाया
एक शख्स मुझको अच्छा इंसान समझ बैठा है
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'momo' -
i throw away happiness
he fetches it back
(after my pet dog)-
Life can only be measured by the stories we live,
not by the years we survive.
Travel boosts the stories we chance upon.
Life calls for stories, and stories call for travel.
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दिल्ली तुम्हारे बगैर
दिल्ली नही रहती
गुर्राने लगती है
जैसे खीसियाई बिल्ली
(पूरी कविता कैप्शन में पढ़े)
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i could only
write bad poems
even after seeing her
how can i be a poet
not even a fake one
for he atleast knows
how to copy and paste-
तुम्हे देख भी मैंने
बुरी कविताएं ही लिखी
और ज्ञात हुआ कि
मेरा कवि होना
केवल मेरा दंभ है
भला मैं कवि कैसे
हो सकता है हूं
मुझे तो देखकर भी
लिखना नहीं आता-